Wednesday, October 27, 2010

Sukhasana: सुखासन

सुखासन भी बैठकर किया जाने वाला योग है.  इस योग से शरीर को सुख और शांति की अनुभूति मिलती है.  यह योग श्वास प्रश्वास और ध्यान पर आधारित है.

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सुखासन के लाभ सुखासन शांति प्रदान करने वाला योग है.  यह ध्यान और श्वसन के लिए लाभदायक मुद्रा है.  इस योग से बैठते समय शरीर का जो पोस्चर होना चाहिए वह तैयार होता है.

सुखासन की अवस्था इस योग को आप ज़मीन पर बैठकर अथवा कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं.  योग करते समय सिर और रीढ़ ही हड्डी सीधी होनी चाहिए.  अभ्यास के दौरान नाक से सांस लेना और छोड़ना चाहिए.  योग अभ्यास के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि छाती स्थिर हो और पेट में सांस के उतार चढ़ाव का एहसास हो.  अभ्यास के दौरान लम्बे समय तक इस मुद्रा में बने रहना चाहिए इससे आपको अधिक मानसिक शांति मिलती है.


योग की क्रिया
स्टेप 1 पलथी लगाकर बैठें. स्टेप 2 दोनों पैरों को एक दूसरे को एक दूसरे के ऊपर लाएं. स्टेप 3 पैरों को खींचकर अपने नीचे लाएं. स्टेप 4 दोनों हाथो को घुटनों पर रखें और हथेलियों को
ऊपर की ओर. स्टेप 5 कंधों को आरामदायक स्थिति में झुकाएं और कोहनियों को थोड़ा पीछे रखें एवं छाती को  ऊपर की ओर तानकर फैलाएं. स्टेप 6 शरीर के  ऊपरी हिस्से को तानकर रखें एवं हिप्स को नीचे की ओर हल्का दबाएं. इस आसन का अभ्यास  5-10 मिनट कर सकते हैं.

Dandasana: दंडासन

बैठकर किये जाने वाले योगों में एक है दंडासन. इस योग से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है. यह सिटिंग पोस्चर के लिए बेहतरीन योग है. योग का अभ्यास करने वालो के लिए इस योग की मु्द्रा कई प्रकार से लाभदायक है.


दंडासन के लाभ:
इस योग के अभ्यास से सही ठंग से बैठना का तरीका जान पाते हैं. इस योग की मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से हिप्स और पेडू में मौजूद तनाव दूर होता है और इनमें लचीलापन आता है. इस आसन से कमर मजबूत और सुदृढ़ होता है.

दंडासन अवस्था
बैठकर किये जाने वाले योग मुद्राओं में दंडासन प्राथमिक अवस्था का योग है. इस योग की मुद्रा में शरीर के ऊपरी और नीचले हिस्से दोनों का ख्याल रखना होता है. शरीर का ऊपरी हिस्सा सीधा और तना हुआ रहना चाहिए. इस स्थिति में सामान्य और सहज रहना चाहिए. शरीर का नीचला हिस्सा ज़मीन से लगा होना चाहिए. इस स्थिति में शरीर को सीधा रखने के लिए जरूरत के अनुसार जंघाओं पर हाथ रखने के बजाय, आप हाथों को पीछे कमर पर ले जाकर दोनों हाथों की उंगलियों के बीच बंधन बनाकर कमर का सहारा दे सकते हैं. अगर कमर को मोड़ना कठिन हो तो सहारा देने के लिए आप कम्बल को मोड़कर उसपर बैठ सकते है.

योग क्रिया:

* 1.दंडासन में सबसे पहले सीधा तन कर बैठना चाहिए और दोनों पैरों को चहरे के समानान्तर एक दूसरे से सटाकर सीधा रखना चाहिए.
* 2.हिप्स को ज़मीन की दिशा में थोड़ा दबाकर रखना चाहिए और सिर को सीधा रखना चाहिए.
* 3 अपने पैरो की उंगलियों को अंदर की ओर मोड़ें और तलवों ये बाहर की ओर धक्का दें.

Tuesday, October 26, 2010

जालंधर बंध

इसे चिन बंध भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस बंध का अविष्कार जालंधरिपाद नाथ ने किया था इसीलिए उनके नाम पर इसे जालंधर बंध कहते हैं। हठयोग प्रदीपिका और घेरंड संहिता में इस बंध के अनेक लाभ बताएँ गए हैं। कहते हैं कि यह बंध मौत के जाल को भी काटने की ताकत रखता है, क्योंकि इससे दिमाग, दिल और मेरुदंड की नाड़ियों में निरंतर रक्त संचार सुचारु रूप से संचालित होता रहता है।

विधि : किसी भी सुखासन पर बैठकर पूरक करके कुंभक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबाएँ। इसे जालंधर बंध कहते हैं। अर्थात कंठ को संकोचन करके हृदय में ठोड़ी को दृढ़ करके लगाने का नाम जालंधर बंध है।

इसके लाभ : जालंधर के अभ्यास से प्राण का संचरण ठीक से होता है। इड़ा और पिंगला नाड़ी बंद होकर प्राण-अपान सुषुन्मा में प्रविष्ट होता है। इस कारण मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में सक्रियता बढ़ती है। इससे गर्दन की माँसपेशियों में रक्त का संचार होता है, जिससे उनमें दृढ़ता आती है। कंठ की रुकावट समाप्त होती है। मेरुदंड में ‍खिंचाव होने से उसमें रक्त संचार तेजी से बढ़ता है। इस कारण सभी रोग दूर होते हैं और व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है।

सावधानी : शुरू में स्वाभाविक श्वास ग्रहण करके जालंधर बंध लगाना चाहिए। यदि गले में किसी प्रकार की तकलीफ हो तो न लगाएँ। शक्ति से बाहर श्वास ग्रहण करके जालंधर न लगाएँ। श्वास की तकलीफ या सर्दी-जुकाम हो तो भी न लगाएँ। योग शिक्षक से अच्छे से सीखकर इसे करना चाहिए।

उड्‍डीयान बंध

उम्र के साथ व्यक्ति का पेट तो बढ़ता ही है त्वचा भी ढीली पड़ने लगती है। जिन नाड़ियों में रक्त दौड़ता है वे भी कमजोर होने लगती है, लेकिन उड्डीयान बंध से उम्र के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। योग के बंध और क्रियाओं को करने से व्यक्ति सदा तरोताजा और युवा बना रह सकता है।

उड्‍डीयान का अर्थ होता है उड़ान। इस बंध के कारण आँख, कान, नाक और मुँह अर्थात सातों द्वार बंद हो जाते हैं और प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर उड़ान भरने लगता है। दरअसल प्राण सुषुम्ना में ऊपर की ओर उठने लगता है इसीलिए इसे उड्डीयान बंध कहते हैं। उड्डीयान बंध को दो तरह से किया जा सकता है, खड़े होकर और बैठकर।

खड़े होकर : दोनों पाँवों के बीच अंतर रखते हुए, घुटनों को मोड़कर थोड़ा-सा आगे झुके। दोनों हाथों को जाँघों पर रखें और मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खींचकर सातों छीद्रों को बंद कर दें। यह उड्‍डीयान बंध है। अर्थात रेचक करके 20 से 30 सेंकंड तक बाह्य कुंभक करें।

बैठकर : सुखासन या पद्मासन में बैठकर हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखकर थोड़ा आगे झुके और पेट के स्नायुओं को अंदर खींचते हुए पूर्ण रेचक करें तथा बाह्म कुंभक करें और इसके पश्चात श्वास धीरे-धीरे अंदर लेते हुए पसलियों को ऊपर उठाएँ और पेट को ढीला छोड़ दें। इस अवस्था में पेट अंदर की ओर सिकुड़कर गोलाकार हो जाएगा।

दोनों ही तरह की विधि या क्रिया में पेट अंदर की ओर जाता है। इसके अभ्यास के माध्यम से ही नौली क्रिया की जा सकती है।

उड्डीयान के लाभ : इस बंध से पेट, पेडु और कमर की माँसपेशियाँ सक्रिय होकर शक्तिशाली बनती है। पेट और कमर की अतिरिक्त चर्बी घटती है। फेफड़ें और हृदय पर दबाव पड़ने से इनकी रक्त संचार प्रणालियाँ सुचारु रूप से चलने लगती है। इस बंध के नियमित अभ्यास से पेट और आँतों की सभी बीमारियाँ दूर होती है। इससे शरीर को एक अद्‍भुत कांति प्राप्त होती है।

मूलबंध और जालंधरबंध का एक साथ अभ्यास बन जाने पर उसी समय में अपनी लंबी जिह्वा को उलटकर कपालकुहर में प्रविष्ट कर वहाँ स्थिर रखें, तो उड्डियानबंध भी बन जाता है। इससे कान, आँख, मुख आदि के आवागमन के सातों रास्ते बंद हो जाते हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में प्रविष्ट प्राय अंतराकाश में ही उड़ान भरने लगते हैं। इसी प्राण के उड़ान भरने के कारण इसका नाम उड्डियानबंध पड़ा है। इस बंध की महता सबसे अधिक प्रतिपादित की गई है, क्योंकि इस एक ही बंध से सात द्वार बंद हो जाते हैं।

फिट रहने के 10 फंडे

कई लोगों को जिम जाकर वर्कआउट करना पसंद नहीं होता। इसके पीछे उनकी अपनी वजहें होती हैं। मसलन जिम का दूर होना , वक्त की कमी , तेज म्यूजिक , जिम में ज्यादा भीड़ आदि , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे लोग खुद को फिट नहीं रख सकते। कुछ एक्सरसाइज ऐसी हैं , जो बेहद आसान हैं और इन्हें घर पर करके ही खुद को फिट रखा जा सकता है। ऐसी ही 10 दमदार एक्सरसाइज के बारे में बता रही हैं नमिता जैन :

हम हमेशा से सुनते - पढ़ते आए हैं कि फिट और तंदुरुस्त रहने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है , लेकिन कंफ्यूजन इस बात को लेकर रहता है कि किस एक्सरसाइज शिड्यूल को फॉलो किया जाए। एक्सरसाइज की दुनिया में अलग - अलग लोगों और अलग - अलग मकसदों के लिए अलग - अलग एक्सरसाइज और अलग - अलग शिड्यूल मौजूद हैं। ऐसा ही एक एक्सरसाइज रिजीम है स्ट्रेंथ एक्सरसाइज। अगर आप इसे अपने वर्कआउट रुटीन में शामिल करते हैं तो मानकर चलिए कि बोन इंजरी और फ्रैक्चर्स जैसी बीमारियों से बचे रहने का काफी हद तक इंतजाम हो गया। उस पर बोनस यह कि ओस्टियोपोरोसिस और कमर दर्द जैसी स्थितियों को रोकने या उन्हें कम करने में आपको मदद मिलेगी। आइए देखें कौन सी हैं ये एक्सरसाइज :
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1. पुश - अप्स
2. बाइसेप कर्ल
3. ट्राइसेप्स डिप्स
4. काफ रेज
5. पावर लंजेज
6. बट्स ब्रिज
7.एब्डॉमिनल क्रंच
8. रिवर्स कर्ल
8. ऑब्लिक क्रंच
10. बैक एक्स्टेंशन

वर्कआउट के नियम
- घर पर किए जाने वाले वर्कआउट को आमतौर पर लोग गंभीरता से नहीं लेते , लेकिन वर्कआउट में रेगुलर होना बेहद जरूरी है। अपने डेली प्लानर में वर्कआउट को जरूर लिख लें। इससे आप दूसरे जरूरी कामों की तरह वर्कआउट को भी रोजाना नियम से करेंगे। आज छुट्टी है , आज नींद आ रही है , आज मन नहीं है , जैसे बहाने बनाकर एक्सरसाइज शिड्यूल को एक दिन के लिए भी न टालें।

- जिस वक्त वर्कआउट कर रहे हैं , उस वक्त सिर्फ वर्कआउट ही करें। इस दौरान घर के दूसरे सदस्यों से बातचीत या बीच में कोई दूसरा काम करने जैसी प्रैक्टिस बंद कर दें। घर के सदस्यों को साफ बता दें कि यह वक्त आपका है।

- वर्कआउट के दौरान म्यूजिक चलाने से वर्कआउट के दौरान होने वाली बोरियत को खत्म किया जा सकता है। इस दौरान अपनी पसंद का कोई भी म्यूजिक चला लें। आपको पता भी नहीं चलेगा , कब आपने अपना एक्सरसाइज शिड्यूल निबटा डाला।

जरूरी इक्विपमेंट्स
- डमबेल्स या 500-500 एमएल की पानी की दो बोतलें।
- कारपेट
- एक कुर्सी

Push-up: पुश-अप्स

क्या : बॉडी के ऊपरी हिस्सों को खूबसूरत शेप में रखना चाहते हैं , तो पुश - अप्स बढ़िया एक्सरसाइज है।


कैसे करें : हाथों को फर्श पर रखें। आपके दोनों हाथ कंधों के नीचे होने चाहिए। कमर सीधी रखें। अब अपनी कुहनियों को मोड़ें और सीने को फर्श के नजदीक लाएं। फिर वापस उसी स्थिति में लौट आएं। यह एक पुशअप माना जाएगा। ऐसे 16 राउंड लगाएं।

फायदे : सीना , कंधे और बाजू मजबूत होते हैं।

Bicep curl: बाइसेप कर्ल

क्या : बाइसेप्स को सही शेप में लाने और उन्हें मजबूत करने के लिए यह अच्छी एक्सरसाइज है।


कैसे करें : दोनों हाथों में वेट ले लें। अपनी कुहनियों को कंधे की तरफ मोड़ें और वापस पहले वाली स्थिति में ले आएं। कुहनियों को कंधे की तरफ लाने और फिर वापस ले जाने में बाइसेप्स पर तनाव पड़ता है , जिससे वे मजबूत होते हैं। इसके 16 सेट लगा लें।

फायदे : इस एक्सरसाइज से बाईसेप्स ( बाजुओं ) की मसल्स टोन होती हैं।

Triceps Dips: ट्राइसेप्स डिप्स

क्या : यह बाजुओं के ऊपरी हिस्से की एक्सरसाइज है , जिससे बाजुओं का पिछला हिस्सा टोन होता है। इन मसल्स को मजबूत करने की ज्यादा जरूरत है , क्योंकि बांह के इस हिस्से की मसल्स उतनी मजबूत नहीं होतीं , जितनी कि सामने वाले हिस्से की।


कैसे करें : चित्र में दिखाए गए तरीके से हाथों का सहारा लेकर ऐसी पोजिशन ले लें , जैसे आप किसी कुर्सी पर बैठे हों। हिप्स को फर्श की तरफ ले जाएं। ऐसा करने पर आपकी कुहनियां मुड़ेंगी। अब वापस पहले वाली स्थिति में आने के लिए अपनी ट्राइसेप्स को यूज करें। इसके भी 16 सेट लगा लें।

फायदे : इस एक्सरसाइज से ट्राईसेप्स की मसल्स मजबूत होती हैं और सही आकार में आती है।

काफ रेज

क्या : काफ मसल्स ( पिंडलियों ) को टोन करने के लिए यह एक अच्छी और प्रभावशाली एक्सरसाइज है। एक महीने तक लगातार एक्सरसाइज कर लेने के बाद आपको साफ अंतर दिखाई देगा।


कैसे करें : सीधे खड़े हो जाएं। आपके कंधे , कमर और सीना ऊपर की तरफ उठे होने चाहिए। अब पैर के पंजों के बल आ जाएं और एडि़यों को जितना ऊपर उठा सकते हैं , उठाएं। इसके बाद वापस पुरानी स्थिति में लौट आएं। इस एक्सरसाइज को भी 16 बार कर लें।

फायदे : यह एक्सरसाइज काफ मसल्स को मजबूत बनाकर उन्हें शेप में लाती है।

पावर लंजेज

क्या : थाई और हिप्स को शेप में लाने के लिए यह एक अच्छी एक्सरसाइज है।

कैसे करें : दोनों हाथों में वेट ले लें और घुटनों के बल आ जाएं। पैरों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर फासला रहेगा। चित्र में दिखाए गए तरीके से एक पैर को आगे लाएं। दोनों घुटने इस तरह मुड़ेंगे कि वे 90 डिग्री का एंगल बनाएं। इसके बाद वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यही प्रोसिजर दूसरे पैर के साथ भी दोहराएं। इस एक्सरसाइज को 16 बार कर लें।

बट्स ब्रिज

क्या : बट्स के लिए अच्छी एक्सरसाइज है।

कैसे करें : चटाई पर लेट जाएं। बट्स को अंदर की तरफ भींचें और धीरे - धीरे उन्हें फर्श से ऊपर उठा दें। इसके बाद धीरे से बट्स को वापस पहले वाली स्थिति में ले आएं। यह एक सेट हुआ। इस तरह के 16 सेट लगा लें।

फायदे : इस एक्सरसाइज को लगातार करने से हिप्स की मसल्स पर असर होता है और वे ज्यादा फर्म और कर्वी होते हैं।

एब्डॉमिनल क्रंच

क्या है : यह बेसिक एब्डॉमिनल एक्सरसाइज है , लेकिन है काफी प्रभावशाली।

कैसे करें : पीठ के बल लेट जाएं और हाथों को सिर के पीछे रख लें। चित्र में दिखाए तरीके से घुटनों को मोड़ें। कंधों को धीरे - धीरे उठाएं। इससे आपको एब्डॉमिन में खिंचाव महसूस होगा। कंधों को वापस नीचे ले आएं। कंधों को ऊपर की तरफ उठाते वक्त सांस बाहर छोड़ना है और नीचे ले जाते वक्त सांस अंदर लेना है। जब कंधे ऊपर उठा रहे हैं , तो हाथों से सिर को सिर्फ सपोर्ट देना है। हाथों का सर पर इतना प्रेशर नहीं पड़ना चाहिए कि आपकी ठुड्डी सीने की तरफ झुकने लगे। कंधे ऊपर उठाते वक्त इस बात का भी ध्यान रखें कि गर्दन के एरिया में कोई दिक्कत न हो। ज्यादा फायदा चाहते हैं तो टांगें उठा लें और घुटनों को 90 डिग्री के एंगल पर मोड़ लें। इस एक्सरसाइज को भी 16 बार करना है।

फायदे : एब्डॉमिनल मसल्स को मजबूत बनाती है और उन्हें टोन करती है।

Reverse Curl: रिवर्स कर्ल

क्या है : रिवर्स कर्ल में गर्दन और कंधों पर कोई स्ट्रेस नहीं आता क्योंकि ये दोनों ही अंग इस एक्सरसाइज में फर्श पर होते हैं। यह एक्सरसाइज भी उन्हीं एब्डॉमिनल मसल्स को टारगेट करती है , जिन्हें एब्डॉमिनल क्रंच में किया जाता है , लेकिन यहां मूवमेंट की शुरुआत ऐब्स के निचले हिस्से होती है।


कैसे करें : पीठ के बल लेट जाएं। दोनों हाथ साइड में रहेंगे और हथेलियां नीचे की तरफ होंगी। धीरे - धीरे दोनों टांगों को ऊपर उठाएं। दोनों टांगें इस तरह ऊपर उठेंगी कि पेल्विस का हिस्सा भी थोड़ा उठ जाए। दोनों टांगों को अपनी तरफ लाएं और फिर वापस अपनी पुरानी पोजिशन में लौट जाएं। इस एक्सरसाइज के 16 सेट लगाने हैं।

फायदा : ऐब्स को सही शेप में लाने में मदद करती है और उन्हें टोन करती है।

ऑब्लिक क्रंच

क्या : इसमें कोशिश यह होती है कि आप अपने कंधों को जितना घुटनों के नजदीक ला सकते हैं , लाएं। कंधे घुटनों के जितने नजदीक जाएंगे , आपकी वेस्ट के लिए यह उतना ही अच्छा होगा।

कैसे करें : पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर फासला रखें। बाहों को सिर के पीछे ले जाएं। कंधों को उठाएं और उन्हें इस तरह ट्विस्ट करें कि बायां कंधा दायें घुटने की तरफ आए। इसी तरह दूसरी साइड में भी ट्विस्ट करें और दायें कंधे को बाएं घुटने की तरफ ले जाएं। इसके भी 16 सेट लगा लें।

फायदे : वेस्ट की मसल्स मजबूत होती हैं।

बैक एक्स्टेंशन

क्या : जैसा कि नाम से ही जाहिर है कमर के लिए अच्छी एक्सरसाइज है।


कैसे करें : पेट के बल लेट जाएं। कुहनियां मुड़ी रहेंगी और फोरआर्म्स मैट पर होंगी। धीरे - धीरे कंधे और सीने को फर्श से ऊपर उठाएं और फिर नीचे लाएं। कंधे और सीने को उठाते वक्त सिर , गर्दन और रीढ़ एक सीध में होने चाहिए। कंधे ऊपर उठाते हुए गर्दन की मसल्स पर स्ट्रेन न डालें।

फायदा : कमर की मसल्स को मजबूत बनाकर बॉडी पोस्चर को बेहतर बनाती है।

'सेक्स' की बातें

कैसे आती है उत्तेजना
पेनिस में इरेक्शन विचार से होता है, स्पर्श से होता है। दिमाग में एक सेक्स सेंटर है। जब वह उत्तेजित होता है तो मे
सेज पेनिस की तरफ जाता है। बदन में खून का प्रवाह तेज हो जाता है। पूरे शरीर में पेनिस में खून का प्रवाह सबसे ज्यादा तेज होता है। इसी वजह से लिंग में उत्तेजना ओर स्त्रियों की योनि में गीलापन आता है। पेनिस के इरेक्शन के लिए योग्य हॉर्मोन का होना जरूरी है। पुरुषों में 60 साल के बाद और महिलाओं में 45 साल के बाद हॉर्मोन की कमी होने लगती है।

इरेक्टाइल डिस्फंक्शन
क्या है: सेक्स के दौरान या उससे पहले पेनिस में इरेक्शन (तनाव) के खत्म हो जाने को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या नपुंसकता कहते हैं। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन कई तरह का हो सकता है। हो सकता है, कुछ लोगों को बिल्कुल भी इरेक्शन न हो, कुछ लोगों को सेक्स के बारे में सोचने पर इरेक्शन हो जाता है, लेकिन जब सेक्स करने की बारी आती है, तो पेनिस में ढीलापन आ जाता है। इसी तरह कुछ लोगों में पेनिस वैजाइना के अंदर डालने के बाद भी इरेक्शन की कमी हो सकती है। इसके अलावा, घर्षण के दौरान भी अगर किसी का इरेक्शन कम हो जाता है, तो भी यह इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की निशानी है। इरेक्शन सेक्स पूरा हो जाने के बाद यानी इजैकुलेशन के बाद खत्म होना चाहिए। कई बार लोगों को वहम भी हो जाता है कि कहीं उन्हें इरेक्टाइल डिस्फंक्शन तो नहीं।

सीधी सी बात है कि आप जिस काम को करने की कोशिश कर रहे हैं, वह काम अगर संतुष्टिपूर्ण तरीके से कर पाते हैं तो सब ठीक है और नहीं कर पा रहे हैं तो समस्या हो सकती है। जिन लोगों में यह दिक्कत पाई जाती है, वे चिड़चिड़े हो सकते हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी कम हो सकता है।

वजह: इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक भी हो सकती है और मानसिक भी। अगर किसी खास समय इरेक्शन होता है और सेक्स के समय नहीं होता, तो इसका मतलब यह समझना चाहिए कि समस्या मानसिक स्तर की है। खास समय इरेक्शन होने से मतलब है- सुबह सोकर उठने पर, पेशाब करते वक्त, मास्टरबेशन के दौरान या सेक्स के बारे में सोचने पर। अगर इन स्थितियों में भी इरेक्शन नहीं होता तो समझना चाहिए कि समस्या शारीरिक स्तर पर है। अगर समस्या मानसिक स्तर पर है तो साइकोथेरपी और डॉक्टरों द्वारा बताई गई कुछ सलाहों से समस्या सुलझ जाती है।

- शारीरिक वजह ये चार हो सकती हैं : चार छोटे एस (S) बड़े एस यानी सेक्स को प्रभावित करते हैं। ये हैं : शराब, स्मोकिंग, शुगर और स्ट्रेस।

- हॉर्मोंस डिस्ऑर्डर्स इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की एक खास वजह है।

- पेनिस के सख्त होने की वजह उसमें खून का बहाव होता है। जब कभी पेनिस में खून के बहाव में कमी आती है तो उसमें पूरी सख्ती नहीं आ पाती और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। कुछ लोगों के साथ ऐसा भी होता है कि शुरू में तो पेनिस के अंदर ब्लड का फ्लो पूरा हो जाता है, लेकिन वैजाइना में एंटर करते वक्त ब्लड का यह फ्लो वापस लौटने लगता है और पेनिस की सख्ती कम होने लगती है।

- नर्वस सिस्टम में आई किसी कमी के चलते भी यह समस्या हो सकती है। यानी न्यूरॉलजी से जुड़ी समस्याएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हो सकती हैं।

- हमारे दिमाग में सेक्स संबंधी बातों के लिए एक खास केंद्र होता है। इसी केंद्र की वजह से सेक्स संबंधी इच्छाएं नियंत्रित होती हैं और इंसान सेक्स कर पाता है। इस सेंटर में अगर कोई डिस्ऑर्डर है, तो भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन हो सकता है।

- कई बार लोगों के मन में सेक्स करने से पहले ही यह शक होता है कि कहीं वे ठीक तरह से सेक्स कर भी पाएंगे या नहीं। कहीं पेनिस धोखा न दे जाए। मन में ऐसी शंकाएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह बनती हैं। इसी डर की वजह से लॉन्ग-टर्म में व्यक्ति सेक्स से मन चुराने लगता है और उसकी इच्छा में कमी आने लगती है।

- डॉक्टरों का मानना है कि 80 फीसदी मामलों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक होती है, बाकी 20 फीसदी मामले ऐसे होते हैं जिनमें इसके लिए मानसिक कारण जिम्मेदार होते हैं।

ट्रीटमेंट
पहले इस समस्या को आहार-विहार और कसरत करने से ठीक करने की कोशिश की जाती है, लेकिन जब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता तो कोई भी ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले डॉक्टर समस्या की असली वजह का पता लगाते हैं। इसके लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। वजह के अनुसार आमतौर पर इलाज के तरीके ये हैं:

1. हॉर्मोन थेरपी : अगर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हॉर्मोन की कमी है तो हॉर्मोन थेरपी की मदद से इसे दो से तीन महीने के अंदर ठीक कर दिया जाता है। इस ट्रीटमेंट का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।

2. ब्लड सप्लाई : जब कभी पेनिस में आर्टरीज की ब्लॉकेज की वजह से ब्लड सप्लाई में कमी आती है, तो दवाओं की मदद से इस ब्लॉकेज को खत्म किया जाता है। इससे पेनिस में ब्लड की सप्लाई बढ़ जाती है और उसमें तनाव आने लगता है।

3. सेक्स थेरपी : कई मामलों में समस्या शारीरिक न होकर दिमाग में होती है। ऐसे मामलों में सेक्स थेरपी की मदद से मरीज को सेक्स संबंधी विस्तृत जानकारी दी जाती है, जिससे वह अपने तरीकों में सुधार करके इस समस्या से बच सकता है।

4. वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा : वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा जैसे ड्रग्स की मदद से भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को दूर किया जा सकता है। वैसे कुछ डॉक्टरों का मानना है कि वैक्यूम पंप और इंजेक्शन थेरपी अब पुराने जमाने की बात हो चुकी हैं।

- वैक्यूम पंप : आजकल बाजार में कई तरह के वैक्यूम पंप मौजूद हैं। रोज अखबारों में इसके तमाम ऐड आते रहते हैं। इसकी मदद से बिना किसी साइड इफेक्ट के इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का हल निकाला जा सकता है। वैक्यूम पंप एक छोटा सा इंस्ट्रूमेंट होता है। इसकी मदद से पेनिस के चारों तरफ 100 एमएम (एचजी) से ज्यादा का वैक्यूम बनाया जाता है जिससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ने लगता है, और तीन मिनट के अंदर उसमें पूरी सख्ती आ जाती है। लगभग 80 फीसदी लोगों को इससे फायदा हो जाता है। चूंकि इसमें कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। वैक्यूम पंप आमतौर पर उन लोगों के लिए है जो 50 की उम्र के आसपास पहुंच गए हैं। यंग लोगों को इसकी सलाह नहीं दी जाती है, फिर भी जो भी इसका इस्तेमाल करे, उसे डॉक्टर की सलाह जरूर ले लेनी चाहिए।

- वायग्रा : इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वायग्रा का इस्तेमाल अच्छा ऑप्शन है, लेकिन इसका इस्तेमाल किसी भी सूरत में बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं करना चाहिए। वायग्रा में मौजद तत्व उस केमिकल को ब्लॉक कर देते हैं, जो पेनिस में होने वाले ब्लड फ्लो को रोकने के लिए जिम्मेदार है। इससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है और फिर इरेक्शन आ जाता है। वायग्रा इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को ठीक करने में फायदेमंद तो साबित होती है, लेकिन यह महज एक टेंपररी तरीका है। इससे समस्या की वजह ठीक नहीं होती।

इनका असर गोली लेने के चार घंटे तक रहता है। वायग्रा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए। कई मामलों में इसे लेने के चलते मौत भी हुई हैं। गोली लेने के 15 मिनट बाद असर शुरू हो जाता है।

अगर हाई और लो ब्लडप्रेशर, हार्ट डिजीज, लीवर से संबंधित रोग, ल्यूकेमिया या कोई एलर्जी है तो वायग्रा लेने से पहले विशेष सावधानी रखें और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ही चलें।

- सर्जरी : जब ऊपर दिए गए तरीके फेल हो जाते हैं, तो अंतिम तरीके के रूप में पेनिस की सर्जरी की जाती है।

प्रीमैच्योर इजैकुलेशन
प्रीमैच्योर इजैकुलेशन या शीघ्रपतन पुरुषों का सबसे कॉमन डिस्ऑर्डर है। सेक्स के लिए तैयार होते वक्त, फोरप्ले के दौरान या पेनिट्रेशन के तुरंत बाद अगर सीमेन बाहर आ जाता है, तो इसका मतलब प्रीमैच्योर इजैकुलेशन है। ऐसी हालत में पुरुष अपनी महिला पार्टनर को पूरी तरह संतुष्ट किए बिना ही फारिग हो जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पुरुष का अपने इजैकुलेशन पर कोई अधिकार नहीं होता। आदर्श स्थिति यह होती है कि जब पुरुष की इच्छा हो, तब वह इजैकुलेट करे, लेकिन प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की स्थिति में ऐसा नहीं होता।

- सेरोटोनिन जैसे न्यूरो ट्रांसमिटर्स की कमी से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की समस्या हो सकती है।

- यूरेथेरा, प्रोस्टेट आदि में अगर कोई इंफेक्शन है, तो भी प्रीमैच्योर इजैकुलेशन हो सकता है।

- दिमाग में मौजूद सेक्स सेंटर एरिया में अगर कोई डिस्ऑर्डर है तो भी सीमेन का डिस्चार्ज तेजी से होता है।

- कुछ लोगों के पेनिस में उत्तेजना पैदा करने वाले न्यूरोट्रांसमिटर्स ज्यादा संख्या में होते हैं। इनकी वजह से ऐसे लोगों में टच करने के बाद उत्तेजना तेजी से आ जाती है और वे जल्दी क्लाइमैक्स पर पहुंच जाते हैं।

- कई बार एंग्जायटी, टेंशन और सीजोफ्रेनिया की वजह से भी ऐसा हो सकता है।

दवाएं : प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की वजह को जानने के बाद उसके मुताबिक खाने की दवाएं दी जाती हैं। इनकी मदद से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इसमें करीब दो महीने का वक्त लगता है। इन दवाओं के कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं।

इंजेक्शन थेरपी: अगर खाने की दवाओं से काम नहीं चलता तो इंजेक्शन थेरपी दी जाती है। इनसे तीन मिनट के अंदर पेनिस हार्ड हो जाता है और यह हार्डनेस 30 मिनट तक बरकरार रहती है। इसकी मदद से कोई भी शख्स सही तरीके से सेक्स कर सकता है। ये इंजेक्शन कुछ दिनों तक दिए जाते हैं। इसके बाद खुद-ब-खुद उस शख्स का अपने इजैकुलेशन पर कंट्रोल होने लगता है और फिर इन इंजेक्शन को छोड़ा जा सकता है।

टोपिकल थेरपी : यह टेंपररी ट्रीटमेंट है। इसमें कुछ खास तरह की क्रीम का यूज किया जाता है। इन क्रीम की मदद से डिस्चार्ज का टाइम बढ़ जाता है। इनका भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।

सेक्स थेरपी : दवाओं के साथ मरीज को कुछ एक्सरसाइज भी सिखाई जाती हैं। ये हैं :

स्टॉप स्टार्ट टेक्निक : पार्टनर की मदद से या मास्टरबेशन के माध्यम से उत्तेजित हो जाएं। जब आपको ऐसा लगे कि आप क्लाइमैक्स तक पहुंचने वाले हैं, तुरंत रुक जाएं। खुद को कंट्रोल करें और सुनिश्चित करें कि इजैकुलेशन न हो। लंबी गहरी सांस लें और कुछ पलों के लिए रिलैक्स करें। कुछ पलों बाद फिर से पेनिस को उत्तेजित करना शुरू कर दें। जब क्लाइमैक्स पर पहुंचने वाले हों, तभी रोक लें और रिलैक्स करें। इस तरह बार बार दोहराएं। कुछ समय बाद आप महसूस करेंगे कि शुरू करने और स्टॉप करने के बीच का समय धीरे धीरे ज्यादा हो रहा है। इसका मतलब है कि आप पहले के मुकाबले ज्यादा समय तक टिक रहे हैं। लगातार प्रैक्टिस करने से इजैकुलेशन कब हो इस पर काबू पाया जा सकता है।

कीजल एक्सरसरइज : कीजल एक्सरसाइज न सिर्फ प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को कंट्रोल करने में सहायक है, बल्कि प्रोस्टेट से संबंधित समस्याएं भी इससे ठीक की जा सकती हैं। इसके लिए पेशाब करते वक्त स्क्वीज, होल्ड, रिलीज पैटर्न अपनाना होता है। यानी पेशाब का फ्लो शुरू होते ही मसल्स का स्क्वीज करें, कुछ पलों के लिए रुकें और फिर से रिलीज कर दें। इस दौरान इस प्रॉसेस का बार बार दोहराएं। इन सेक्स एक्सरसाइज की प्रैक्टिस अगर कोई शख्स चार हफ्ते तक लगातार कर लेता है तो उसके बाद वह 8 से 10 मिनट तक बिना इजैकुलेशन के इरेक्शन बरकरार रख सकता है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि काफी टाइम बाद सेक्स करने से भी व्यक्ति जल्दी स्खलित हो जाता है। ऐसे मामलों में इन एक्सरसाइजों को कर लिया जाए तो इस समस्या से भी निजात पाई जा सकती है।

मास्टरबेशन
सेक्स के दौरान पेनिस जो काम योनि में करता है, वही काम मास्टरबेशन के दौरान पेनिस मुट्ठी में करता है। मास्टरबेशन युवाओं का एक बेहद सामान्य व्यवहार है। जिन लोगों के पार्टनर नहीं हैं, उनके साथ-साथ मास्टरबेशन ऐसे लोगों में भी काफी कॉमन है, जिनका कोई सेक्सुअल पार्टनर है। जिन लोगों के सेक्सुअल पार्टनर नहीं हैं या जिनके पार्टनर्स की सेक्स में रुचि नहीं है, ऐसे लोग अपनी सेक्सुअल टेंशन को मास्टरबेशन की मदद से दूर कर सकते हैं। जो लोग प्रेग्नेंसी और एसटीडी के खतरों से बचना चाहते हैं, उनके लिए भी मास्टरबेशन उपयोगी है।

नॉर्मल: मास्टरबेशन बिल्कुल नॉर्मल है। सेक्स का सुख हासिल करने का यह बेहद सुरक्षित तरीका है और ताउम्र किया जा सकता है, लेकिन अगर यह रोजमर्रा की जिंदगी को ही प्रभावित करने लगे तो इसका सेहत और दिमाग दोनों पर गलत असर हो सकता है।

कुछ तथ्य
- सामान्य सेक्स के तीन तरीके होते हैं - पार्टनर के साथ सेक्स, मास्टरबेशन और नाइट फॉल। अगर पार्टनर से सेक्स कर रहे हें तो जाहिर है सीमेन बाहर आएगा। सेक्स नहीं करते, तो मास्टरबेशन के जरिये सीमेन बाहर आएगा। अगर कोई शख्स यह दोनों ही काम नहीं करता है तो उसका सीमेन नाइट फॉल के जरिये बाहर आएगा। सीमेन सातों दिन और चौबीसों घंटे बनता रहता है। सीमेन बनता रहता है, खाली होता रहता है।

- मास्टरबेशन करने से कोई शारीरिक या मानसिक कमजोरी नहीं आती।

- पेनिस में जितनी बार इरेक्शन होता है, उतनी बार मास्टरबेशन किया जा सकता है। इसकी कोई लिमिट नहीं है। हर किसी के लिए अलग-अलग दायरे हैं।

- इससे बाल गिरना, आंखों की कमजोरी, मुंहासे, वजन में कमी, नपुंसकता जैसी समस्याएं नहीं होतीं।

- सीमेन की क्वॉलिटी पर कोई असर नहीं होता। न तो सीमेन का कलर बदलता और न वह पतला होता है।

- इससे पेनिस के साइज पर भी कोई असर नहीं होता। जो लोग कहते हैं कि मास्टरबेशन से पेनिस का टेढ़ापन, पतलापन, नसें दिखना जैसी समस्याएं हो जाती हैं, वे खुद भी भ्रम में हैं और दूसरों को भी भ्रमित कर रहे हैं।

- कुछ लोगों को लगता है कि मास्टरबेशन करने के तुरंत बाद उन्हें कुछ कमजोरी महसूस होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। यह मन का वहम है।

- मास्टरबेशन एड्स और रेप जैसी स्थितियों को रोकने का अच्छा तरीका है।

- कामसूत्र या आयुर्वेद में कहीं यह नहीं लिखा है कि मास्टरबेशन बीमारी है।

- 13-14 साल की उम्र में लड़कों को इसकी जरूरत होने लगती है। कुछ लोग शादी के बाद भी सेक्स के साथ-साथ मास्टरबेशन करते रहते हैं। यह बिल्कुल नॉर्मल है।

मिथ्स क्या हैं

1. पेनिस का साइज छोटा है तो सेक्स में दिक्कत होगी। बड़ा पेनिस मतलब सेक्स का ज्यादा मजा।

सचाई : छोटे पेनिस की बात नाकामयाब दिमाग में ही आती है। दुनिया में ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे पेनिस के स्टैंडर्ड साइज का पता किया सके। वैजाइना की सेक्सुअल लंबाई छह इंच होती है। इसमें से बाहरी एक तिहाई हिस्सा यानी दो इंच में ही ग्लांस तंतु होते हैं। अगर किसी महिला को उत्तेजित करना है, तो वह योनि के बाहरी एक तिहाई हिस्से से ही उत्तेजित हो जाएगी। जाहिर है, अगर उत्तेजित अवस्था में पुरुष का लिंग दो इंच या उससे ज्यादा है, तो वह महिला को संतुष्ट करने के लिए काफी है। ध्यान रखें, खुद और अपने पार्टनर की संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण चीज पेनिस की लंबाई नहीं होती, बल्कि यह होती है कि उसमें तनाव कैसा आता है और कितनी देर टिकता है। पेनिस की चौड़ाई का भी खास महत्व नहीं है। योनि इलास्टिक होती है। जितना पेनिस का साइज होगा, वह उतनी ही फैल जाएगी। बड़ा पेनिस किसी भी तरह से सेक्स में ज्यादा आनंद की वजह नहीं होता।

2. पेनिस में टेढ़ापन होना सेक्स की नजर से समस्या है।

सचाई : पेनिस में थोड़ा टेढ़ापन होता ही है। किसी भी शख्स का पेनिस बिल्कुल सीधा नहीं होता। यह या तो थोड़ा दायीं तरफ या फिर थोड़ा बायीं तरफ झुका होता है। इसकी वजह से पेनिस को वैजाइना में प्रवेश कराने में कोई दिक्कत नहीं होती है। ध्यान रखें, घर में दाखिल होना महत्वपूर्ण है, थोड़े दायें होकर दाखिल हों या फिर बायें होकर या फिर सीधे। ऐसे मामलों में इलाज की जरूरत तब ही समझनी चाहिए योनि में पेनिस का प्रवेश कष्टदायक हो।

3. बाजार में तमाम तेल हैं, जिनकी मालिश करने से पेनिस को लंबा मोटा और ताकतवर बनाया जा सकता है। इसी तरह तमाम गोलियां, टॉनिक आदि लेने से सेक्स पावर बढ़ोतरी होती है।

सचाई : पेनिस पर बाजार में मिलने वाले टॉनिक का कोई असर नहीं होता, असर होता है उसके ऊपर बने सांड या घोड़े के चित्र का। इसी तरह जब पेनिस पर तेल की मालिश की जाती है, तो उस हाथ की स्नायु मजबूत होती हैं, जिससे तेल की मालिश की जाती है, लेकिन पेनिस की मसल्स पर इसका कोई भी असर नहीं होता।

4. पेनिस में नसें नजर आती हैं तो यह कमजोरी की निशानी है।

सचाई : पेनिस में अगर कभी नसें नजर आती भी हैं तो वे नॉर्मल हैं। उनका पेनिस की कमजोरी से कोई लेना देना नहीं है।

5. जिन लोगों के पेनिस सरकमसाइज्ड (इस स्थिति में पेनिस की फोरस्किन पीछे की तरफ रहती है और ग्लांस पेनिस हमेशा बाहर रहता है) हैं, वे सेक्स में ज्यादा कामयाब होते हैं।

सचाई : सरकमसाइज्ड पेनिस का सेक्स की संतुष्टि से कोई लेना-देना नहीं है। यह तब कराना चाहिए जब उत्तेजित अवस्था में पुरुष की फोरस्किन पीछे हटाने में दिक्कत हो।

6. सेक्स पावर बढ़ाने नुस्खे, गोलियां (आयुर्वेदिक और एलोपैथिक), मसाज ऑयल, शिलाजीत आदि बाजार में हैं। इनसे सेक्स पावर बढ़ाई जा सकती है।

सचाई : बाजार में आमतौर मिलने वाली ऐसी गोलियों और दवाओं से सेक्स पावर नहीं बढ़ती। आयुर्वेद के नियम कहते हैं कि मरीज को पहले डॉक्टर से मिलना चाहिए और फिर इलाज करना चाहिए। हर मरीज के लिए उसके हिसाब से दवा दी जाती है, दवाओं को जनरलाइज नहीं किया जा सकता।

एक पक्ष यह भी
यूथ्स की सेक्स समस्याओं पर एलोपैथी और आयुर्वेद की सोच में अंतर मिलता है। जहां एक तरफ एलोपैथी में माना जाता है कि सीमेन शरीर से बाहर निकलने से शरीर और दिमाग को कोई नुकसान नहीं होता, वहीं आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करने वाले लोग सीमेन के संरक्षण की बात करते हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टरों के मुताबिक :

- महीने में दो से आठ बार तक नाइट फॉल स्वाभाविक है, लेकिन इससे ज्यादा होने लगे, तो यह सेहत के लिए नुकसानदायक है।

- मास्टरबेशन करने से याददाश्त कमजोर होती है। एकाग्रता और सेहत पर बुरा असर होता है।

- प्रीमैच्योर इजैकुलेशन और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को आयुर्वेद में दवाओं के जरिए ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए मरीज को खुद डॉक्टर से मिलकर इलाज कराना चाहिए। दरअसल, आयुर्वेद में मरीज विशेष के लक्षणों और हाल के हिसाब से दवा दी जाती है, जिनका फायदा होता है।

- बाजार में आयुर्वेद के नाम पर बिकने वाले मालिश करने के तेल, कैपसूल और ताकत की दवाएं जनरल होती हैं। इन बाजारू दवाओं से सेक्स पावर बढ़ाने या पेनिस को लंबा-मोटा करने में कोई मदद नहीं मिलती। ये चीजें आयुर्वेद को बदनाम करती हैं।

- विज्ञापनों और नीम-हकीमों से दूर रहें। तमाम नीम-हकीम आयुर्वेद के नाम पर युवकों को बेवकूफ बनाकर पैसा ठगते हैं। इनसे बचें और हमेशा किसी योग्य डॉक्टर से ही संपर्क करें।

- मर्यादित सेक्स करने से जिंदगी में यश बढ़ता है और परिवार में बढ़ोतरी होती है, जबकि अमर्यादित और बहुत ज्यादा सेक्स रोगों को बढ़ाता है।

- मल-मूत्र का वेग होने पर और व्रत, शोक और चिंता की स्थिति में सेक्स से परहेज करना चाहिए।

- जो चीजें शरीर को सेहतमंद रखने में मदद करती हैं, वही चीजें सेक्स की पावर बढ़ाने में भी मददगार हैं। ऐसे में अगर आप स्वास्थ्य के नियमों का पालन कर रहे हैं और सेहतमंद खाना ले रहे हैं तो आपको सेक्स पावर बढ़ाने वाली चीजें अलग से लेने की कोई जरूरत नहीं है।

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉक्टर प्रकाश कोठारी, फाउंडर अडवाइजर, वर्ल्ड असोसिएशन फॉर सेक्सॉलजी
डॉक्टर अनूप धीर,
डॉक्टर एल. के. त्रिपाठी, आयुर्वेदिन फिजिशियन
:NBT