tag:blogger.com,1999:blog-33809595964372847192023-11-16T21:20:50.432+05:30HealthPradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.comBlogger51125tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-90317552290811808212011-07-27T13:35:00.002+05:302011-07-27T13:36:46.190+05:30Traps, Lats, Rhomboids<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
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<br /></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://photos.mensfitness.co.uk/images/library_UK_12/bentover_row_6001_7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="http://photos.mensfitness.co.uk/images/library_UK_12/bentover_row_6001_7.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="articletext">
<ul>
<li>Stand with your feet shoulder-width apart.</li>
<li>Bend your knees and lean forward at the hips, not the waist.</li>
<li>Your back should be straight and your neck in line with your spine.</li>
<li>Grip the bar just wider than shoulder-width apart.</li>
<li>Let the bar hang straight down at around knee level.</li>
<li>Retract your shoulder blades and tense your core muscles to stabilise your body.</li>
<li>Squeeze your shoulder blades together and pull the bar into your sternum.</li>
<li>Lower the barbell slowly to the start.</li>
<li>Hold your torso steady throughout the move.</li>
</ul>
</div>
<br /></div>
</div>
Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-33366425794251753472011-05-01T15:26:00.001+05:302011-05-01T15:38:20.501+05:30हंसी से बड़ी कोई दवा नहीं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<b>हंसी से बड़ी कोई दवा नहीं.</b> . . इस बात को हम हमेशा से सुनते आए हैं, लेकिन मानते शायद कम ही हैं क्योंकि बिना किसी खर्च के इलाज की बात आसानी से हजम नहीं होती। वैसे भी, जिंदगी की आपाधापी और तनाव ने लोगों को हंसना भुला दिया है। रिसर्च बताती हैं कि पहले लोग रोजाना करीब 18 मिनट रोजाना हंसते थे, अब 6 मिनट ही हंसते हैं जबकि हंसना बेहद फायदेमंद है। दिल खोलकर हंसनेवाले लोग बीमारी से दूर रहते हैं और जो बीमार हैं, वे जल्दी ठीक होते हैं। हंसी न सिर्फ हंसनेवाले, बल्कि उसके आसपास के लोगों पर भी पॉजिटिव असर डालती है इसलिए रोजाना हंसें, खूब हंसें, जोरदार हंसें, दिल खोलकर हंसें।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>हंसी के फायदे तमाम</b></div><br />
- हंसी से टेंशन और डिप्रेशन कम होता है।<br />
<br />
- यह नेचरल पेनकिलर का काम करती है।<br />
<br />
- हंसी शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ाती है।<br />
<br />
- हंसी ब्लड सर्कुलेशन को कंट्रोल करती है।<br />
<br />
- जोरदार हंसी कसरत का भी काम करती है।<br />
<br />
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी करती है।<br />
<br />
- इससे काम करने की क्षमता बढ़ती है।<br />
<br />
- यह आत्मविश्वास और पॉजिटिव नजरिए में इजाफा करती है।<br />
<br />
- इसे नेचरल कॉस्मेटिक भी कह सकते हैं क्योंकि इससे चेहरा खूबसूरत बनता है।<br />
<br />
- खुशमिजाज लोगों के सोशल और बिजनेस कॉन्टैक्ट भी ज्यादा होते हैं।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>कैसे काम करती है हंसी</b></div><br />
- हमारे शरीर में कुछ स्ट्रेस हॉर्मोन होते हैं, जैसे कि कॉर्टिसोल, एड्रेनलिन आदि। जब कभी हम तनाव में होते हैं तो ये हॉर्मोन शरीर में सक्रिय हो जाते हैं। इनका लेवल बढ़ने पर घबराहट होती है। ज्यादा घबराहट होने पर सिर दर्द, सर्वाइकल, माइग्रेन, कब्ज हो सकती है और शुगर लेवल बढ़ सकता है। हंसने से कॉर्टिसोल व एड्रेनलिन कम होते हैं और एंडॉर्फिन, फिरॉटिनिन जैसे फील गुड हॉमोर्न बढ़ जाते हैं। इससे मन उल्लास और उमंग से भर जाता है। इससे दर्द और एंग्जाइटी कम होती है। इम्युन सिस्टम मजबूत होता है और बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी होती है।<br />
<br />
- जितनी देर हम जोर-जोर से हंसते हैं, उतनी देर हम एक तरह से लगातार प्राणायाम करते हैं क्योंकि हंसते हुए हमारा पेट अंदर की तरफ चला जाता है। साथ ही हम लगातार सांस छोड़ते रहते हैं, यानी शरीर से कार्बनडाइऑक्साइड बाहर निकलती रहती है। इससे पेट में ऑक्सिजन के लिए ज्यादा जगह बनती है। दिमाग को ढंग से काम करने के लिए 20 फीसदी ज्यादा ऑक्सिजन की जरूरत होती है। खांसी, नजला, जुकाम, स्किन प्रॉब्लम जैसी एलर्जी ऑक्सिजन की कमी से बढ़ जाती हैं। हंसी इन बीमारियों को कंट्रोल करने में मदद करती है। साथ ही, शुगर, बीपी, माइग्रेन, जैसी बीमारियां (जिनके पीछे स्ट्रेस बड़ी वजह होती है) होने की आशंका भी कम होती है क्योंकि करीब 60-70 फीसदी बीमारियों की वजह तनाव ही होता है। हंसी पैनिक को कंट्रोल करती है, जिसकी बदौलत रिकवरी तेज होती है।<br />
<br />
- जब हम जोर-जोर से हंसते हैं तो झटके से सांस छोड़ते हैं। इससे फेफड़ों में फंसी हवा बाहर निकल आती है और फेफड़े ज्यादा साफ हो जाते हैं।<br />
<br />
- हंसने से शरीर के अंदरूनी हिस्सों को मसाज मिलती है। इसे इंटरनल जॉगिंग भी कहा जाता है। हंसी कार्डियो एक्सरसाइज है। हंसने पर चेहरे, हाथ, पैर, और पेट की मसल्स व गले, रेस्पिरेटरी सिस्टम की हल्की-फुल्की कसरत हो जाती है। 10 मिनट की जोरदार हंसी इतनी ही देर के हल्की कसरत के बराबर असर करती है। इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और मसल्स रिलैक्स होती हैं।<br />
<br />
- जब हम हंसते हैं तो कोई भी तकलीफ या बीमारी कम महसूस होती है क्योंकि जिस तरह के विचार मन में आते हैं, हमारा शरीर वैसे ही रिएक्ट करता है। हंसने से हम लगभग शून्य की स्थिति में आ जाते हैं यानी सब भूल जाते हैं।<br />
<br />
- जिंदगी में दिन और रात की तरह सुख और दुख लगे रहते हैं। इनसे बचा नहीं जा सकता लेकिन अगर हम लगातार बुरा और नेगेटिव सोचते हैं तो दिमाग सही फैसला नहीं कर पाता और परेशानियां बढ़ जाएंगी। हंसने पर दिमाग पूरा काम करता है और हम सही फैसला ले पाते हैं।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>क्या कहती हैं रिसर्च</b></div><br />
अमेरिका के फिजियॉलजिस्ट और लाफ्टर रिसर्चर विलियम फ्राइ के मुताबिक जोरदार हंसी दूसरे इमोशंस के मुकाबले ज्यादा फिजिकल एक्सरसाइज साबित होती है। इससे मसल्स एक्टिवेट होते हैं, हार्ट बीट बढ़ती है और ज्यादा ऑक्सिजन मिलने से रेस्पिरेटरी सिस्टम बेहतर बनता है। ये फायदे जॉगिंग आदि से मिलते-जुलते हैं। जरनल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के मुताबिक, लाफ्टर थेरपी से लंबी बीमारी के मरीजों को काफी फायदा होता है इसलिए अमेरिका, यूरोप और खुद हमारे देश में भी कई अस्पतालों से लेकर जेलों तक में लाफ्टर थेरपी या हास्य योग कराया जाता है।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>हास्य योग</b></div><br />
लोगों को हंसना सिखाने में हास्य योग काफी पॉप्युलर हो रहा है। हास्य और योग को मिलाकर बना है हास्य योग, जिसमें प्राणायाम (लंबी-लंबी सांसें लेते) के साथ हंसी के अलग-अलग कसरत करना सिखाया जाता है। हास्य योग के तहत जोर-जोर से ठहाके मारकर, बिना किसी वजह के बेबाक हंसने की प्रैक्टिस की जाती है। इसमें शरीर के आंतरिक हास्य को बाहर निकालना सिखाया जाता है, जिससे शरीर सेहतमंद होता है। शुरुआत में नकली हंसी के साथ शुरू होनेवाली यह क्रिया धीरे-धीरे हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है और हम बिना किसी कोशिश के हंसने लगते हैं। हास्य योग इस वैज्ञानिक आधार पर काम करता है कि शरीर नकली और असली हंसी के बीच फर्क नहीं कर पाता, इसलिए दोनों से ही एक जैसे फायदे होते हैं।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>हास्य योग के छह चरण होते हैं।</b></div><br />
<b>आचमन</b> : इस दौरान अच्छे विचार करें। सोचें कि मुझे अच्छा बनना है। मैं अच्छा बन गया हूं। मुझे अच्छे काम करने हैं और खुश रहना है। ठान लें कि हमें पॉजिटिव सोचना है, पॉजिटिव देखना है और पॉजिटिव ही बोलना है।<br />
<br />
<b>आचरण</b> : इसमें जो चीज हमने आचमन में की है, उसे अपने आचरण में लाना होता है। मतलब, वे चीजें हमारे बर्ताव में आएं और दूसरे लोगों को नजर आएं।<br />
<br />
<b>हास्यासन</b> : इसमें वे क्रियाएं आती हैं, जो हम पार्क में करते हैं। इन क्रियाओं को लगातार करने से हंसमुख रहना हमारी आदत बन जाती है।<br />
<br />
<b>संवर्द्धन :</b> योग करने का लाभ करनेवाले को मिलता है, लेकिन हास्य योग का फायदा उसे भी मिलता है, जो इसे देखता है। अगर कोई हंस रहा है तो वहां से गुजरने वाले को भी बरबस हंसी या मुस्कान आ जाती है।<br />
<br />
<b>ध्यान</b> : हास्य योग की क्रियाओं को करने से शरीर के अंदर जो ऊर्जा आई है, ध्यान के जरिए उसे कंट्रोल किया जाता है।<br />
<br />
<b>मौन </b>: मौन के चरण में हंसी को हम अंदर-ही-अंदर महसूस करते हैं।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>हास्यासन में नीचे लिखी क्रियाओं को किया जाता है :</b></div><br />
<b>हास्य कपालभाति :</b> जब लोग कपालभाति करते हैं तो उनके मन में तनाव होता है कि अगर हमने ऐसा नहीं किया तो हमारी बीमारी ठीक नहीं होगी। दुखी या तनावग्रस्त मन से किया गया कपालभाति उतना फायदेमंद नहीं होता। हास्य कपालभाति करने के लिए वज्रासन में बैठ जाएं। सीधा हाथ पेट पर रखें और हल्के से हां बोलें। ऐसा करने से सांस नाक और मुंह दोनों जगहों से बाहर आएगी और पेट अंदर जाएगा। आम कपालभाति में सांस सिर्फ नाक से बाहर जाती है, वहीं हास्य कपालभाति में सांस नाक और मुंह, दोनों जगहों से बाहर जाती है।<br />
<br />
<b>मौन हास्य</b> : किसी भी आसन में बैठ जाएं। लंबा गहरा सांस लें। रोकें और फिर हंसते हुए छोड़ें। ध्यान रखें, बिना आवाज किए हंसना है। इसी क्रिया को बार-बार दोहराएं।<br />
<br />
<b>बाल मचलन :</b> जैसे बच्चा मचलता है, कमर के बल रोलिंग करता है, उसी तरह इसमें हंसने की कोशिश की जाती है। पूरे मन को उमंग मिलती है।<br />
<br />
<b>ताली हास्य</b> : बाएं हाथ की हथेली खोलें। सीधे हाथ की एक उंगली से पांच बार ताली बजाएं। फिर दो उंगली से पांच बार ताली बजाएं। इसी तरह तीन, चार और फिर पांचों उंगलियों से पांच-पांच बार ताली बजाते हुए जोरदार तरीके से हंसें। ताली बजाने से हाथ के एक्युप्रेशर पॉइंट्स पर प्रेशर पड़ता है और वे एक्टिवेट हो जाते हैं।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>बेहद आसान है हास्य योग</b></div><br />
अगर ऊपर बताए गए स्टेप्स मुश्किल लगते हैं तो सीधे-सीधे हास्य के व्यायाम कर सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं नमस्ते हास्य (एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालकर हंसते जाएं), तू-तू, मैं-मैं हास्य (एक-दूसरे की ओर उंगली से लड़ने का भाव बनाते हुए हंसते जाएं), प्रशंसा हास्य (अंगूठे और उंगली को मिलाकर एक-दूसरे की तारीफ का भाव रखते हुए हंसते जाएं), मोबाइल फोन हास्य (मोबाइल की तरह कान पर हाथ लगाकर हंसते जाएं), लस्सी हास्य (हे... की आवाज निकालते हुए ऐसे करें मानो लस्सी के दो गिलास मिलाए और पी लिए। इसके बाद हंसते जाएं) आदि। बीच-बीच में लंबी सांसें लेते जाएं। इन तमाम अभ्यासों को करना काफी आसान है। यही वजह है कि हास्य योग इतना पॉप्युलर हुआ है।<br />
<br />
<b>कैसे सीखें </b>: जो लोग हास्य योग सीखना चाहते हैं, वे जगह-जगह पार्कों में लगनेवाले शिविरों से सीख सकते हैं। ये शिविर फ्री होते हैं। इसके बाद रोजाना घर पर प्रैक्टिस की जा सकती है। एक सेशन में करीब 15 से 40 मिनट का वक्त लगता है।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>रखें ध्यान</b></div><br />
पार्क में खाली ठहाके लगाने से कुछ नहीं होता। वहां तो ठहाके लगा लिए और बाहर आए तो फिर से टेंशन ले ली तो सब किया बेकार हो जाता है। जरूरी है कि हम हंसी को अपनी जिंदगी और अपनी पर्सनैलिटी का हिस्सा बनाएं। शुरुआत में यह मुश्किल लगता है लेकिन अभ्यास से ऐसा किया जा सकता है। जिस चीज का बार-बार अभ्यास किया जाता है, वह धीरे-धीरे नेचरल बन जाती हूं। शुरुआत में नकली लगनेवाली जोरदार ठहाके वाली हंसी धीरे-धीरे हमारी आदत में शुमार हो जाती है।<br />
<div style="text-align: center;"><b><br />
</b></div><div style="text-align: center;"><b>खुद भी सीख सकते हैं हंसना</b></div><br />
जो लोग पार्क आदि में जाकर दूसरों के साथ हंसना नहीं सीख सकते, वे अकेले में घर के अंदर भी हंसी की प्रैक्टिस कर सकते हैं। वे रोजाना 15 मिनट के लिए शीशे के सामने खड़े हो जाएं और बिना वजह जोर-जोर से हंसें। हंसी का असली फायदा तभी है, जब आप कुछ देर तक लगातार हंसें। इसके अलावा, बच्चों और दोस्तों के साथ वक्त गुजारना भी हंसने का अच्छा बहाना हो सकता है। कई बार डॉक्टर भी अपने मरीजों को लाफ्टर थेरपी की सलाह देते हैं। इसमें सबसे पहले खुद के चेहरे पर मुस्कान लाने को कहा जाता है। कार्टून शो, कॉमिडी शो या जोक्स आदि भी देख-सुन सकते हैं। हालांकि यह हंसी कंडिशनल होती है और सिर्फ एंटरटेनमेंट और रिलैक्सेशन के लिए होती है। इसका सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। असली फायदा लंबी और बिना शर्त की हंसी से ही होता है। लोगों और खुद से परफेक्शन की उम्मीद न रखें, वरना हंसी के लिए जगह नहीं बन पाएगी। खुद को अपने करीबी लोगों की शरारतों और छेड़खानियों के लिए तैयार रखें।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>कौन बरतें सावधानी</b></div><br />
हार्निया, पाइल्स, छाती में दर्द, आंखों की बीमारियों और हाल में बड़ी सर्जरी कराने वाले लोगों को हास्य योग या हास्य थेरपी नहीं करनी चाहिए। प्रेग्नेंट महिलाओं को भी इसकी सलाह नहीं दी जाती। टीबी और ब्रोंकाइटिस के मरीजों को भी ख्याल रखना चाहिए कि उनकी हंसी से दूसरों में इन्फेक्शन न फैले।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>अच्छी हंसी और खराब हंसी</b></div><br />
अच्छी हंसी वह है, जो दूसरों के साथ हंसी जाए और खराब हंसी वह है, जो दूसरों पर हंसी जाए यानी उनका मजाक उड़ाकर हंसें। जब हम बेबाक, बिंदास, बिना तर्क, बिना शर्त और बिना वजह बच्चों की तरह हंसते हैं तो वह बेहद असरदार होती है। पांच साल से छोटे बच्चे दिन में 300-400 बार हंसते हैं और बड़े लोग बमुश्किल 10-15 बार ही हंसते हैं, इसलिए बच्चों की तरह बिना शर्त हंसें। रावण की तरह हंसना यानी दुनिया को दिखाने के लिए हंसना सही नहीं है। हंसना खुद के लिए चाहिए। इसी तरह अकेले हंसने का कोई मतलब नहीं है। हमारे आसपास के लोगों का हंसना भी जरूरी है। आजकल ज्यादातर लोग नकली हंसी हंसते हैं, जिसके पीछे अक्सर कोई स्वार्थ होता है, मसलन ऑफिस में बॉस को खुश करने वाली हंसी। ऐसी हंसी का शरीर को कोई फायदा नहीं है। इसी तरह जब हम दूसरों का मजाक उड़ाते हुए हंसते हैं तो हंसी के जरिए अपनी फ्रस्टेशन निकालते हैं। यह सही नहीं है। ज्यादातर कॉमिडी शो और चुटकुलों के जरिए ऐसी ही हंसी को बढ़ावा मिलता है। शुरुआत में निश्छल हंसी हंसना मुश्किल है। ऐसा दो ही स्थिति में मुमकिन है। पहला : हमारी सोच बेहद पॉजिटिव हो और हम बेहद खुशमिजाज हों। दूसरा : हास्य योग के जरिए हम अच्छी हंसी सीख लें।<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b>खुशी के लिए हंसी जरूरी</b></div><br />
अक्सर लोग कहते हैं कि जिंदगी में इतने तनाव हैं, तो खुश कैसे रहें और खुश नहीं हैं तो हंसें कैसे? लेकिन सही तरीका यह नहीं है कि हम खुश हैं, इसलिए हंसें, बल्कि हमें इस फॉर्म्युले पर काम करना चाहिए कि हम हंसते हैं, इसलिए खुश रहते हैं क्योंकि हंसने से बहुत-सी तकलीफें अपने आप खत्म हो जाती हैं। कह सकते हैं कि हंसी के लिए खुशी जरूरी नहीं है लेकिन खुशी के लिए हंसी जरूरी है। कई लोग बड़े खुशमिजाज होते हैं लेकिन साथ ही बड़े संवेदनशील भी होते हैं और अक्सर छोटी-छोटी बातों तो लेकर टेंशन ले लेते हैं। ऐसे लोग या तो दोहरी शख्सियत वाले होते हैं, मसलन होते कुछ हैं और दिखते कुछ और। वे सिर्फ खुशमिजाज दिखते हैं, होते नहीं हैं। या फिर ऐसे लोगों का रिएक्शन काफी तेज होता है। वे अक्सर बिना सोचे-समझे अच्छी और बुरी, दोनों स्थिति पर रिएक्ट कर देते हैं। दूसरी कैटिगरी के लोगों को हास्य योग से काफी फायदा होता है। उन्हें माइंड को कंट्रोल करना सिखाया जाता है।<br />
<br />
- रोते गए मरे की खबर लाए यानी दुखी मन से करेंगे तो काम खराब ही होगा।<br />
<br />
- घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलों यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए - निदा फाजली<br />
<br />
- हंसी छूत की बीमारी है। एक को देख, दूसरे को आसानी से लग जाती है।<br />
<br />
<div style="text-align: right;"><b>एक्सपर्ट्स पैनल</b></div><div style="text-align: right;">डॉ. मदन कटारिया, फाउंडर, लाफ्टर योग क्लब्स मूवमेंट</div><div style="text-align: right;">जितेन कोही, हास्य योग गुरु</div><div style="text-align: right;">डॉ. रवि तुली, एक्सपर्ट, होलेस्टिक मेडिसिन</div><div style="text-align: right;">: via NBT</div></div>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-45104422450958525722010-10-27T20:59:00.001+05:302010-10-27T21:02:58.829+05:30Sukhasana: सुखासनसुखासन भी बैठकर किया जाने वाला योग है. इस योग से शरीर को सुख और शांति की अनुभूति मिलती है. यह योग श्वास प्रश्वास और ध्यान पर आधारित है. <br />
<br />
<div style="text-align: center;"><img alt="Sukhasan_939079035.png" border="0" height="436" src="http://yogvani.com/files.php?file=Sukhasan_939079035.png" title="Sukhasan_939079035.png" width="326" /></div><br />
<span style="font-size: small;"><b>सुखासन के लाभ </b></span>सुखासन शांति प्रदान करने वाला योग है. यह ध्यान और श्वसन के लिए लाभदायक मुद्रा है. इस योग से बैठते समय शरीर का जो पोस्चर होना चाहिए वह तैयार होता है. <br />
<br />
<b><span style="font-size: small;">सुखासन की अवस्था</span> </b>इस योग को आप ज़मीन पर बैठकर अथवा कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं. योग करते समय सिर और रीढ़ ही हड्डी सीधी होनी चाहिए. अभ्यास के दौरान नाक से सांस लेना और छोड़ना चाहिए. योग अभ्यास के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि छाती स्थिर हो और पेट में सांस के उतार चढ़ाव का एहसास हो. अभ्यास के दौरान लम्बे समय तक इस मुद्रा में बने रहना चाहिए इससे आपको अधिक मानसिक शांति मिलती है.<br />
<br />
<br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;"><b>योग की क्रिया</b></span><br />
स्टेप 1 पलथी लगाकर बैठें. स्टेप 2 दोनों पैरों को एक दूसरे को एक दूसरे के ऊपर लाएं. स्टेप 3 पैरों को खींचकर अपने नीचे लाएं. स्टेप 4 दोनों हाथो को घुटनों पर रखें और हथेलियों को <br />
ऊपर की ओर. स्टेप 5 कंधों को आरामदायक स्थिति में झुकाएं और कोहनियों को थोड़ा पीछे रखें एवं छाती को ऊपर की ओर तानकर फैलाएं. स्टेप 6 शरीर के ऊपरी हिस्से को तानकर रखें एवं हिप्स को नीचे की ओर हल्का दबाएं. इस आसन का अभ्यास 5-10 मिनट कर सकते हैं.</div>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-75456859598203242932010-10-27T20:57:00.001+05:302010-10-27T21:02:35.768+05:30Dandasana: दंडासनबैठकर किये जाने वाले योगों में एक है दंडासन. इस योग से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है. यह सिटिंग पोस्चर के लिए बेहतरीन योग है. योग का अभ्यास करने वालो के लिए इस योग की मु्द्रा कई प्रकार से लाभदायक है.<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://yogvani.com/thumbnail.php?file=Dasndasan_129890279.png&size=article_small" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://yogvani.com/thumbnail.php?file=Dasndasan_129890279.png&size=article_small" /></a></div><br />
<b>दंडासन के लाभ:</b><br />
इस योग के अभ्यास से सही ठंग से बैठना का तरीका जान पाते हैं. इस योग की मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से हिप्स और पेडू में मौजूद तनाव दूर होता है और इनमें लचीलापन आता है. इस आसन से कमर मजबूत और सुदृढ़ होता है.<br />
<br />
<b>दंडासन अवस्था</b><br />
बैठकर किये जाने वाले योग मुद्राओं में दंडासन प्राथमिक अवस्था का योग है. इस योग की मुद्रा में शरीर के ऊपरी और नीचले हिस्से दोनों का ख्याल रखना होता है. शरीर का ऊपरी हिस्सा सीधा और तना हुआ रहना चाहिए. इस स्थिति में सामान्य और सहज रहना चाहिए. शरीर का नीचला हिस्सा ज़मीन से लगा होना चाहिए. इस स्थिति में शरीर को सीधा रखने के लिए जरूरत के अनुसार जंघाओं पर हाथ रखने के बजाय, आप हाथों को पीछे कमर पर ले जाकर दोनों हाथों की उंगलियों के बीच बंधन बनाकर कमर का सहारा दे सकते हैं. अगर कमर को मोड़ना कठिन हो तो सहारा देने के लिए आप कम्बल को मोड़कर उसपर बैठ सकते है.<br />
<br />
<b>योग क्रिया:</b><br />
<br />
* 1.दंडासन में सबसे पहले सीधा तन कर बैठना चाहिए और दोनों पैरों को चहरे के समानान्तर एक दूसरे से सटाकर सीधा रखना चाहिए. <br />
* 2.हिप्स को ज़मीन की दिशा में थोड़ा दबाकर रखना चाहिए और सिर को सीधा रखना चाहिए. <br />
* 3 अपने पैरो की उंगलियों को अंदर की ओर मोड़ें और तलवों ये बाहर की ओर धक्का दें.Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-34825122205963427312010-10-26T17:35:00.001+05:302010-10-26T17:36:04.057+05:30जालंधर बंधइसे चिन बंध भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस बंध का अविष्कार जालंधरिपाद नाथ ने किया था इसीलिए उनके नाम पर इसे जालंधर बंध कहते हैं। हठयोग प्रदीपिका और घेरंड संहिता में इस बंध के अनेक लाभ बताएँ गए हैं। कहते हैं कि यह बंध मौत के जाल को भी काटने की ताकत रखता है, क्योंकि इससे दिमाग, दिल और मेरुदंड की नाड़ियों में निरंतर रक्त संचार सुचारु रूप से संचालित होता रहता है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/yoga/article/0903/04/images/img1090304077_1_1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/yoga/article/0903/04/images/img1090304077_1_1.jpg" /></a></div><br />
<b>विधि :</b> किसी भी सुखासन पर बैठकर पूरक करके कुंभक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबाएँ। इसे जालंधर बंध कहते हैं। अर्थात कंठ को संकोचन करके हृदय में ठोड़ी को दृढ़ करके लगाने का नाम जालंधर बंध है।<br />
<br />
<b>इसके लाभ :</b> जालंधर के अभ्यास से प्राण का संचरण ठीक से होता है। इड़ा और पिंगला नाड़ी बंद होकर प्राण-अपान सुषुन्मा में प्रविष्ट होता है। इस कारण मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में सक्रियता बढ़ती है। इससे गर्दन की माँसपेशियों में रक्त का संचार होता है, जिससे उनमें दृढ़ता आती है। कंठ की रुकावट समाप्त होती है। मेरुदंड में खिंचाव होने से उसमें रक्त संचार तेजी से बढ़ता है। इस कारण सभी रोग दूर होते हैं और व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है।<br />
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<b>सावधानी :</b> शुरू में स्वाभाविक श्वास ग्रहण करके जालंधर बंध लगाना चाहिए। यदि गले में किसी प्रकार की तकलीफ हो तो न लगाएँ। शक्ति से बाहर श्वास ग्रहण करके जालंधर न लगाएँ। श्वास की तकलीफ या सर्दी-जुकाम हो तो भी न लगाएँ। योग शिक्षक से अच्छे से सीखकर इसे करना चाहिए।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-43081436076039222252010-10-26T17:29:00.001+05:302010-10-26T17:32:20.722+05:30उड्डीयान बंध<span style="color: black; font-size: 10.5pt;">उम्र के साथ व्यक्ति का पेट तो बढ़ता ही है त्वचा भी ढीली पड़ने लगती है। जिन नाड़ियों में रक्त दौड़ता है वे भी कमजोर होने लगती है, लेकिन उड्डीयान बंध से उम्र के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। योग के बंध और क्रियाओं को करने से व्यक्ति सदा तरोताजा और युवा बना रह सकता है।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/yoga/article/1004/13/images/img1100413073_1_1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/yoga/article/1004/13/images/img1100413073_1_1.jpg" /></a></div><span style="color: black; font-size: 10.5pt;">उड्डीयान का <b>अर्थ</b> होता है उड़ान। इस बंध के कारण आँख, कान, नाक और मुँह अर्थात सातों द्वार बंद हो जाते हैं और प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर उड़ान भरने लगता है। दरअसल प्राण सुषुम्ना में ऊपर की ओर उठने लगता है इसीलिए इसे उड्डीयान बंध कहते हैं। उड्डीयान बंध को दो तरह से किया जा सकता है, खड़े होकर और बैठकर।</span><br />
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<span style="color: black; font-size: 10.5pt;"><b>खड़े होकर : </b>दोनों पाँवों के बीच अंतर रखते हुए, घुटनों को मोड़कर थोड़ा-सा आगे झुके। दोनों हाथों को जाँघों पर रखें और मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खींचकर सातों छीद्रों को बंद कर दें। यह उड्डीयान बंध है। अर्थात रेचक करके 20 से 30 सेंकंड तक बाह्य कुंभक करें।</span><br />
<br />
<span style="color: black; font-size: 10.5pt;"><b>बैठकर : </b>सुखासन या पद्मासन में बैठकर हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखकर थोड़ा आगे झुके और पेट के स्नायुओं को अंदर खींचते हुए पूर्ण रेचक करें तथा बाह्म कुंभक करें और इसके पश्चात श्वास धीरे-धीरे अंदर लेते हुए पसलियों को ऊपर उठाएँ और पेट को ढीला छोड़ दें। इस अवस्था में पेट अंदर की ओर सिकुड़कर गोलाकार हो जाएगा।</span><br />
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<span style="color: black; font-size: 10.5pt;">दोनों ही तरह की विधि या क्रिया में पेट अंदर की ओर जाता है। इसके अभ्यास के माध्यम से ही नौली क्रिया की जा सकती है।</span><br />
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<span style="color: black; font-size: 10.5pt;"><b>उड्डीयान के लाभ : </b>इस बंध से पेट, पेडु और कमर की माँसपेशियाँ सक्रिय होकर शक्तिशाली बनती है। पेट और कमर की अतिरिक्त चर्बी घटती है। फेफड़ें और हृदय पर दबाव पड़ने से इनकी रक्त संचार प्रणालियाँ सुचारु रूप से चलने लगती है। इस बंध के नियमित अभ्यास से पेट और आँतों की सभी बीमारियाँ दूर होती है। इससे शरीर को एक अद्भुत कांति प्राप्त होती है।</span><br />
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<span style="color: black; font-size: 10.5pt;">मूलबंध और जालंधरबंध का एक साथ अभ्यास बन जाने पर उसी समय में अपनी लंबी जिह्वा को उलटकर कपालकुहर में प्रविष्ट कर वहाँ स्थिर रखें, तो उड्डियानबंध भी बन जाता है। इससे कान, आँख, मुख आदि के आवागमन के सातों रास्ते बंद हो जाते हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में प्रविष्ट प्राय अंतराकाश में ही उड़ान भरने लगते हैं। इसी प्राण के उड़ान भरने के कारण इसका नाम उड्डियानबंध पड़ा है। इस बंध की महता सबसे अधिक प्रतिपादित की गई है, क्योंकि इस एक ही बंध से सात द्वार बंद हो जाते हैं।</span>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-60202095349744520612010-10-26T17:10:00.001+05:302010-10-26T17:11:51.126+05:30फिट रहने के 10 फंडेकई लोगों को जिम जाकर वर्कआउट करना पसंद नहीं होता। इसके पीछे उनकी अपनी वजहें होती हैं। मसलन जिम का दूर होना , वक्त की कमी , तेज म्यूजिक , जिम में ज्यादा भीड़ आदि , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे लोग खुद को फिट नहीं रख सकते। कुछ एक्सरसाइज ऐसी हैं , जो बेहद आसान हैं और इन्हें घर पर करके ही खुद को फिट रखा जा सकता है। ऐसी ही 10 दमदार एक्सरसाइज के बारे में बता रही हैं नमिता जैन :<br />
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<b>हम हमेशा से सुनते</b> - पढ़ते आए हैं कि फिट और तंदुरुस्त रहने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है , लेकिन कंफ्यूजन इस बात को लेकर रहता है कि किस एक्सरसाइज शिड्यूल को फॉलो किया जाए। एक्सरसाइज की दुनिया में अलग - अलग लोगों और अलग - अलग मकसदों के लिए अलग - अलग एक्सरसाइज और अलग - अलग शिड्यूल मौजूद हैं। ऐसा ही एक एक्सरसाइज रिजीम है स्ट्रेंथ एक्सरसाइज। अगर आप इसे अपने वर्कआउट रुटीन में शामिल करते हैं तो मानकर चलिए कि बोन इंजरी और फ्रैक्चर्स जैसी बीमारियों से बचे रहने का काफी हद तक इंतजाम हो गया। उस पर बोनस यह कि ओस्टियोपोरोसिस और कमर दर्द जैसी स्थितियों को रोकने या उन्हें कम करने में आपको मदद मिलेगी। आइए देखें कौन सी हैं ये <b>एक्सरसाइज </b>:<br />
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1. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_5183.html">पुश - अप्स</a><br />
2. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_912.html">बाइसेप कर्ल</a><br />
3. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_6285.html">ट्राइसेप्स डिप्स</a><br />
4. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_3817.html">काफ रेज</a><br />
5. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_8385.html">पावर लंजेज</a><br />
6. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_6936.html">बट्स ब्रिज</a><br />
7.<a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_8227.html">एब्डॉमिनल क्रंच</a><br />
8. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_7529.html">रिवर्स कर्ल </a><br />
8. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_8946.html">ऑब्लिक क्रंच</a><br />
10. <a href="http://alertclub-fit.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html">बैक एक्स्टेंशन</a><br />
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<b>वर्कआउट के नियम</b><br />
- घर पर किए जाने वाले वर्कआउट को आमतौर पर लोग गंभीरता से नहीं लेते , लेकिन वर्कआउट में रेगुलर होना बेहद जरूरी है। अपने डेली प्लानर में वर्कआउट को जरूर लिख लें। इससे आप दूसरे जरूरी कामों की तरह वर्कआउट को भी रोजाना नियम से करेंगे। आज छुट्टी है , आज नींद आ रही है , आज मन नहीं है , जैसे बहाने बनाकर एक्सरसाइज शिड्यूल को एक दिन के लिए भी न टालें।<br />
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- जिस वक्त वर्कआउट कर रहे हैं , उस वक्त सिर्फ वर्कआउट ही करें। इस दौरान घर के दूसरे सदस्यों से बातचीत या बीच में कोई दूसरा काम करने जैसी प्रैक्टिस बंद कर दें। घर के सदस्यों को साफ बता दें कि यह वक्त आपका है।<br />
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- वर्कआउट के दौरान म्यूजिक चलाने से वर्कआउट के दौरान होने वाली बोरियत को खत्म किया जा सकता है। इस दौरान अपनी पसंद का कोई भी म्यूजिक चला लें। आपको पता भी नहीं चलेगा , कब आपने अपना एक्सरसाइज शिड्यूल निबटा डाला।<br />
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<b>जरूरी इक्विपमेंट्स</b><br />
- डमबेल्स या 500-500 एमएल की पानी की दो बोतलें।<br />
- कारपेट<br />
- एक कुर्सीPradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-74237813912611745452010-10-26T17:00:00.003+05:302010-10-27T21:05:41.911+05:30Push-up: पुश-अप्स<b>क्या : बॉ</b>डी के ऊपरी हिस्सों को खूबसूरत शेप में रखना चाहते हैं , तो पुश - अप्स बढ़िया एक्सरसाइज है।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619286" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="102" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619286" width="320" /></a></div><br />
<b>कैसे करें : </b>हाथों को फर्श पर रखें। आपके दोनों हाथ कंधों के नीचे होने चाहिए। कमर सीधी रखें। अब अपनी कुहनियों को मोड़ें और सीने को फर्श के नजदीक लाएं। फिर वापस उसी स्थिति में लौट आएं। यह एक पुशअप माना जाएगा। ऐसे 16 राउंड लगाएं।<br />
<br />
<b>फायदे :</b> सीना , कंधे और बाजू मजबूत होते हैं।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-52117208741389670882010-10-26T16:57:00.003+05:302010-10-27T21:07:13.567+05:30Bicep curl: बाइसेप कर्ल <b>क्या :</b> बाइसेप्स को सही शेप में लाने और उन्हें मजबूत करने के लिए यह अच्छी एक्सरसाइज है।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619411" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619411" /></a></div><br />
<b>कैसे करें :</b> दोनों हाथों में वेट ले लें। अपनी कुहनियों को कंधे की तरफ मोड़ें और वापस पहले वाली स्थिति में ले आएं। कुहनियों को कंधे की तरफ लाने और फिर वापस ले जाने में बाइसेप्स पर तनाव पड़ता है , जिससे वे मजबूत होते हैं। इसके 16 सेट लगा लें।<br />
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<b>फायदे : </b>इस एक्सरसाइज से बाईसेप्स ( बाजुओं ) की मसल्स टोन होती हैं।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-27446066625460232052010-10-26T16:54:00.003+05:302010-10-27T21:08:05.236+05:30Triceps Dips: ट्राइसेप्स डिप्स<b>क्या </b>: यह बाजुओं के ऊपरी हिस्से की एक्सरसाइज है , जिससे बाजुओं का पिछला हिस्सा टोन होता है। इन मसल्स को मजबूत करने की ज्यादा जरूरत है , क्योंकि बांह के इस हिस्से की मसल्स उतनी मजबूत नहीं होतीं , जितनी कि सामने वाले हिस्से की।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619367" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619367" /></a></div><br />
<b>कैसे करें :</b> चित्र में दिखाए गए तरीके से हाथों का सहारा लेकर ऐसी पोजिशन ले लें , जैसे आप किसी कुर्सी पर बैठे हों। हिप्स को फर्श की तरफ ले जाएं। ऐसा करने पर आपकी कुहनियां मुड़ेंगी। अब वापस पहले वाली स्थिति में आने के लिए अपनी ट्राइसेप्स को यूज करें। इसके भी 16 सेट लगा लें।<br />
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<b>फायदे :</b> इस एक्सरसाइज से ट्राईसेप्स की मसल्स मजबूत होती हैं और सही आकार में आती है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-39705911118662130692010-10-26T16:53:00.000+05:302010-10-26T16:53:14.099+05:30काफ रेज<b>क्या :</b> काफ मसल्स ( पिंडलियों ) को टोन करने के लिए यह एक अच्छी और प्रभावशाली एक्सरसाइज है। एक महीने तक लगातार एक्सरसाइज कर लेने के बाद आपको साफ अंतर दिखाई देगा।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619414" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619414" /></a></div><br />
<b>कैसे करें : </b>सीधे खड़े हो जाएं। आपके कंधे , कमर और सीना ऊपर की तरफ उठे होने चाहिए। अब पैर के पंजों के बल आ जाएं और एडि़यों को जितना ऊपर उठा सकते हैं , उठाएं। इसके बाद वापस पुरानी स्थिति में लौट आएं। इस एक्सरसाइज को भी 16 बार कर लें।<br />
<br />
<b>फायदे </b>: यह एक्सरसाइज काफ मसल्स को मजबूत बनाकर उन्हें शेप में लाती है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-91496998326983442082010-10-26T16:51:00.002+05:302010-10-26T16:51:55.503+05:30पावर लंजेज<b>क्या : </b> थाई और हिप्स को शेप में लाने के लिए यह एक अच्छी एक्सरसाइज है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619394" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619394" /></a></div><br />
<b>कैसे करें : </b>दोनों हाथों में वेट ले लें और घुटनों के बल आ जाएं। पैरों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर फासला रहेगा। चित्र में दिखाए गए तरीके से एक पैर को आगे लाएं। दोनों घुटने इस तरह मुड़ेंगे कि वे 90 डिग्री का एंगल बनाएं। इसके बाद वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यही प्रोसिजर दूसरे पैर के साथ भी दोहराएं। इस एक्सरसाइज को 16 बार कर लें।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-40272122082670332382010-10-26T16:50:00.002+05:302010-10-26T16:50:43.473+05:30बट्स ब्रिज<b>क्या :</b> बट्स के लिए अच्छी एक्सरसाइज है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619102" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="119" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619102" width="320" /></a></div><br />
<b>कैसे करें :</b> चटाई पर लेट जाएं। बट्स को अंदर की तरफ भींचें और धीरे - धीरे उन्हें फर्श से ऊपर उठा दें। इसके बाद धीरे से बट्स को वापस पहले वाली स्थिति में ले आएं। यह एक सेट हुआ। इस तरह के 16 सेट लगा लें।<br />
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<b>फायदे</b> : इस एक्सरसाइज को लगातार करने से हिप्स की मसल्स पर असर होता है और वे ज्यादा फर्म और कर्वी होते हैं।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-25647247460012703062010-10-26T16:48:00.002+05:302010-10-26T16:48:57.451+05:30एब्डॉमिनल क्रंच<b>क्या है :</b> यह बेसिक एब्डॉमिनल एक्सरसाइज है , लेकिन है काफी प्रभावशाली।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619294" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="141" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619294" width="320" /></a></div><br />
<b>कैसे करें : </b>पीठ के बल लेट जाएं और हाथों को सिर के पीछे रख लें। चित्र में दिखाए तरीके से घुटनों को मोड़ें। कंधों को धीरे - धीरे उठाएं। इससे आपको एब्डॉमिन में खिंचाव महसूस होगा। कंधों को वापस नीचे ले आएं। कंधों को ऊपर की तरफ उठाते वक्त सांस बाहर छोड़ना है और नीचे ले जाते वक्त सांस अंदर लेना है। जब कंधे ऊपर उठा रहे हैं , तो हाथों से सिर को सिर्फ सपोर्ट देना है। हाथों का सर पर इतना प्रेशर नहीं पड़ना चाहिए कि आपकी ठुड्डी सीने की तरफ झुकने लगे। कंधे ऊपर उठाते वक्त इस बात का भी ध्यान रखें कि गर्दन के एरिया में कोई दिक्कत न हो। ज्यादा फायदा चाहते हैं तो टांगें उठा लें और घुटनों को 90 डिग्री के एंगल पर मोड़ लें। इस एक्सरसाइज को भी 16 बार करना है।<br />
<br />
<b>फायदे :</b> एब्डॉमिनल मसल्स को मजबूत बनाती है और उन्हें टोन करती है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-15423773493474609132010-10-26T16:46:00.001+05:302010-10-27T21:21:28.609+05:30Reverse Curl: रिवर्स कर्ल <b>क्या है : </b>रिवर्स कर्ल में गर्दन और कंधों पर कोई स्ट्रेस नहीं आता क्योंकि ये दोनों ही अंग इस एक्सरसाइज में फर्श पर होते हैं। यह एक्सरसाइज भी उन्हीं एब्डॉमिनल मसल्स को टारगेट करती है , जिन्हें एब्डॉमिनल क्रंच में किया जाता है , लेकिन यहां मूवमेंट की शुरुआत ऐब्स के निचले हिस्से होती है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619183" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619183" /></a></div><br />
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<b>कैसे करें :</b> पीठ के बल लेट जाएं। दोनों हाथ साइड में रहेंगे और हथेलियां नीचे की तरफ होंगी। धीरे - धीरे दोनों टांगों को ऊपर उठाएं। दोनों टांगें इस तरह ऊपर उठेंगी कि पेल्विस का हिस्सा भी थोड़ा उठ जाए। दोनों टांगों को अपनी तरफ लाएं और फिर वापस अपनी पुरानी पोजिशन में लौट जाएं। इस एक्सरसाइज के 16 सेट लगाने हैं।<br />
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<b>फायदा :</b> ऐब्स को सही शेप में लाने में मदद करती है और उन्हें टोन करती है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-16704450563827444982010-10-26T16:38:00.003+05:302010-10-26T16:44:37.289+05:30ऑब्लिक क्रंच<b>क्या :</b> इसमें कोशिश यह होती है कि आप अपने कंधों को जितना घुटनों के नजदीक ला सकते हैं , लाएं। कंधे घुटनों के जितने नजदीक जाएंगे , आपकी वेस्ट के लिए यह उतना ही अच्छा होगा।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619435" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="125" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619435" width="320" /></a></div><br />
<b>कैसे करें :</b> पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर फासला रखें। बाहों को सिर के पीछे ले जाएं। कंधों को उठाएं और उन्हें इस तरह ट्विस्ट करें कि बायां कंधा दायें घुटने की तरफ आए। इसी तरह दूसरी साइड में भी ट्विस्ट करें और दायें कंधे को बाएं घुटने की तरफ ले जाएं। इसके भी 16 सेट लगा लें।<br />
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<b>फायदे :</b> वेस्ट की मसल्स मजबूत होती हैं।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-75509833818644804612010-10-26T16:37:00.000+05:302010-10-26T16:37:39.011+05:30बैक एक्स्टेंशन <b>क्या : </b> जैसा कि नाम से ही जाहिर है कमर के लिए अच्छी एक्सरसाइज है।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619437" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="81" src="http://navbharattimes.indiatimes.com/photo.cms?msid=6619437" width="320" /></a></div><br />
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<b>कैसे करें :</b> पेट के बल लेट जाएं। कुहनियां मुड़ी रहेंगी और फोरआर्म्स मैट पर होंगी। धीरे - धीरे कंधे और सीने को फर्श से ऊपर उठाएं और फिर नीचे लाएं। कंधे और सीने को उठाते वक्त सिर , गर्दन और रीढ़ एक सीध में होने चाहिए। कंधे ऊपर उठाते हुए गर्दन की मसल्स पर स्ट्रेन न डालें।<br />
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<b>फायदा </b>: कमर की मसल्स को मजबूत बनाकर बॉडी पोस्चर को बेहतर बनाती है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-8241130106094945322010-10-26T16:31:00.000+05:302010-10-26T16:31:36.443+05:30'सेक्स' की बातें<b>कैसे आती है उत्तेजना</b><br />
पेनिस में इरेक्शन विचार से होता है, स्पर्श से होता है। दिमाग में एक सेक्स सेंटर है। जब वह उत्तेजित होता है तो मे<br />
सेज पेनिस की तरफ जाता है। बदन में खून का प्रवाह तेज हो जाता है। पूरे शरीर में पेनिस में खून का प्रवाह सबसे ज्यादा तेज होता है। इसी वजह से लिंग में उत्तेजना ओर स्त्रियों की योनि में गीलापन आता है। पेनिस के इरेक्शन के लिए योग्य हॉर्मोन का होना जरूरी है। पुरुषों में 60 साल के बाद और महिलाओं में 45 साल के बाद हॉर्मोन की कमी होने लगती है।<br />
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<b>इरेक्टाइल डिस्फंक्शन</b><br />
क्या है: सेक्स के दौरान या उससे पहले पेनिस में इरेक्शन (तनाव) के खत्म हो जाने को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या नपुंसकता कहते हैं। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन कई तरह का हो सकता है। हो सकता है, कुछ लोगों को बिल्कुल भी इरेक्शन न हो, कुछ लोगों को सेक्स के बारे में सोचने पर इरेक्शन हो जाता है, लेकिन जब सेक्स करने की बारी आती है, तो पेनिस में ढीलापन आ जाता है। इसी तरह कुछ लोगों में पेनिस वैजाइना के अंदर डालने के बाद भी इरेक्शन की कमी हो सकती है। इसके अलावा, घर्षण के दौरान भी अगर किसी का इरेक्शन कम हो जाता है, तो भी यह इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की निशानी है। इरेक्शन सेक्स पूरा हो जाने के बाद यानी इजैकुलेशन के बाद खत्म होना चाहिए। कई बार लोगों को वहम भी हो जाता है कि कहीं उन्हें इरेक्टाइल डिस्फंक्शन तो नहीं।<br />
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सीधी सी बात है कि आप जिस काम को करने की कोशिश कर रहे हैं, वह काम अगर संतुष्टिपूर्ण तरीके से कर पाते हैं तो सब ठीक है और नहीं कर पा रहे हैं तो समस्या हो सकती है। जिन लोगों में यह दिक्कत पाई जाती है, वे चिड़चिड़े हो सकते हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी कम हो सकता है।<br />
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<b>वजह:</b> इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक भी हो सकती है और मानसिक भी। अगर किसी खास समय इरेक्शन होता है और सेक्स के समय नहीं होता, तो इसका मतलब यह समझना चाहिए कि समस्या मानसिक स्तर की है। खास समय इरेक्शन होने से मतलब है- सुबह सोकर उठने पर, पेशाब करते वक्त, मास्टरबेशन के दौरान या सेक्स के बारे में सोचने पर। अगर इन स्थितियों में भी इरेक्शन नहीं होता तो समझना चाहिए कि समस्या शारीरिक स्तर पर है। अगर समस्या मानसिक स्तर पर है तो साइकोथेरपी और डॉक्टरों द्वारा बताई गई कुछ सलाहों से समस्या सुलझ जाती है।<br />
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- शारीरिक वजह ये चार हो सकती हैं : चार छोटे एस (S) बड़े एस यानी सेक्स को प्रभावित करते हैं। ये हैं : शराब, स्मोकिंग, शुगर और स्ट्रेस।<br />
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- हॉर्मोंस डिस्ऑर्डर्स इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की एक खास वजह है।<br />
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- पेनिस के सख्त होने की वजह उसमें खून का बहाव होता है। जब कभी पेनिस में खून के बहाव में कमी आती है तो उसमें पूरी सख्ती नहीं आ पाती और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। कुछ लोगों के साथ ऐसा भी होता है कि शुरू में तो पेनिस के अंदर ब्लड का फ्लो पूरा हो जाता है, लेकिन वैजाइना में एंटर करते वक्त ब्लड का यह फ्लो वापस लौटने लगता है और पेनिस की सख्ती कम होने लगती है।<br />
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- नर्वस सिस्टम में आई किसी कमी के चलते भी यह समस्या हो सकती है। यानी न्यूरॉलजी से जुड़ी समस्याएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हो सकती हैं।<br />
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- हमारे दिमाग में सेक्स संबंधी बातों के लिए एक खास केंद्र होता है। इसी केंद्र की वजह से सेक्स संबंधी इच्छाएं नियंत्रित होती हैं और इंसान सेक्स कर पाता है। इस सेंटर में अगर कोई डिस्ऑर्डर है, तो भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन हो सकता है।<br />
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- कई बार लोगों के मन में सेक्स करने से पहले ही यह शक होता है कि कहीं वे ठीक तरह से सेक्स कर भी पाएंगे या नहीं। कहीं पेनिस धोखा न दे जाए। मन में ऐसी शंकाएं भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह बनती हैं। इसी डर की वजह से लॉन्ग-टर्म में व्यक्ति सेक्स से मन चुराने लगता है और उसकी इच्छा में कमी आने लगती है।<br />
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- डॉक्टरों का मानना है कि 80 फीसदी मामलों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह शारीरिक होती है, बाकी 20 फीसदी मामले ऐसे होते हैं जिनमें इसके लिए मानसिक कारण जिम्मेदार होते हैं।<br />
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<b>ट्रीटमेंट</b><br />
पहले इस समस्या को आहार-विहार और कसरत करने से ठीक करने की कोशिश की जाती है, लेकिन जब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता तो कोई भी ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले डॉक्टर समस्या की असली वजह का पता लगाते हैं। इसके लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। वजह के अनुसार आमतौर पर इलाज के तरीके ये हैं:<br />
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1. <b>हॉर्मोन थेरपी</b> : अगर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की वजह हॉर्मोन की कमी है तो हॉर्मोन थेरपी की मदद से इसे दो से तीन महीने के अंदर ठीक कर दिया जाता है। इस ट्रीटमेंट का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।<br />
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2. <b>ब्लड सप्लाई</b> : जब कभी पेनिस में आर्टरीज की ब्लॉकेज की वजह से ब्लड सप्लाई में कमी आती है, तो दवाओं की मदद से इस ब्लॉकेज को खत्म किया जाता है। इससे पेनिस में ब्लड की सप्लाई बढ़ जाती है और उसमें तनाव आने लगता है।<br />
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3. <b>सेक्स थेरपी : </b>कई मामलों में समस्या शारीरिक न होकर दिमाग में होती है। ऐसे मामलों में सेक्स थेरपी की मदद से मरीज को सेक्स संबंधी विस्तृत जानकारी दी जाती है, जिससे वह अपने तरीकों में सुधार करके इस समस्या से बच सकता है।<br />
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4. <b>वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा : </b>वैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा जैसे ड्रग्स की मदद से भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को दूर किया जा सकता है। वैसे कुछ डॉक्टरों का मानना है कि वैक्यूम पंप और इंजेक्शन थेरपी अब पुराने जमाने की बात हो चुकी हैं।<br />
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- <b>वैक्यूम पंप : </b>आजकल बाजार में कई तरह के वैक्यूम पंप मौजूद हैं। रोज अखबारों में इसके तमाम ऐड आते रहते हैं। इसकी मदद से बिना किसी साइड इफेक्ट के इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का हल निकाला जा सकता है। वैक्यूम पंप एक छोटा सा इंस्ट्रूमेंट होता है। इसकी मदद से पेनिस के चारों तरफ 100 एमएम (एचजी) से ज्यादा का वैक्यूम बनाया जाता है जिससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ने लगता है, और तीन मिनट के अंदर उसमें पूरी सख्ती आ जाती है। लगभग 80 फीसदी लोगों को इससे फायदा हो जाता है। चूंकि इसमें कोई दवा नहीं दी जाती है, इसलिए इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। वैक्यूम पंप आमतौर पर उन लोगों के लिए है जो 50 की उम्र के आसपास पहुंच गए हैं। यंग लोगों को इसकी सलाह नहीं दी जाती है, फिर भी जो भी इसका इस्तेमाल करे, उसे डॉक्टर की सलाह जरूर ले लेनी चाहिए।<br />
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- <b>वायग्रा</b> : इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वायग्रा का इस्तेमाल अच्छा ऑप्शन है, लेकिन इसका इस्तेमाल किसी भी सूरत में बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं करना चाहिए। वायग्रा में मौजद तत्व उस केमिकल को ब्लॉक कर देते हैं, जो पेनिस में होने वाले ब्लड फ्लो को रोकने के लिए जिम्मेदार है। इससे पेनिस में ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है और फिर इरेक्शन आ जाता है। वायग्रा इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को ठीक करने में फायदेमंद तो साबित होती है, लेकिन यह महज एक टेंपररी तरीका है। इससे समस्या की वजह ठीक नहीं होती।<br />
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इनका असर गोली लेने के चार घंटे तक रहता है। वायग्रा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेनी चाहिए। कई मामलों में इसे लेने के चलते मौत भी हुई हैं। गोली लेने के 15 मिनट बाद असर शुरू हो जाता है।<br />
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अगर हाई और लो ब्लडप्रेशर, हार्ट डिजीज, लीवर से संबंधित रोग, ल्यूकेमिया या कोई एलर्जी है तो वायग्रा लेने से पहले <b>विशेष सावधानी </b>रखें और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ही चलें।<br />
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- <b>सर्जरी : </b>जब ऊपर दिए गए तरीके फेल हो जाते हैं, तो अंतिम तरीके के रूप में पेनिस की सर्जरी की जाती है।<br />
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<b>प्रीमैच्योर इजैकुलेशन</b><br />
प्रीमैच्योर इजैकुलेशन या शीघ्रपतन पुरुषों का सबसे कॉमन डिस्ऑर्डर है। सेक्स के लिए तैयार होते वक्त, फोरप्ले के दौरान या पेनिट्रेशन के तुरंत बाद अगर सीमेन बाहर आ जाता है, तो इसका मतलब प्रीमैच्योर इजैकुलेशन है। ऐसी हालत में पुरुष अपनी महिला पार्टनर को पूरी तरह संतुष्ट किए बिना ही फारिग हो जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पुरुष का अपने इजैकुलेशन पर कोई अधिकार नहीं होता। आदर्श स्थिति यह होती है कि जब पुरुष की इच्छा हो, तब वह इजैकुलेट करे, लेकिन प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की स्थिति में ऐसा नहीं होता।<br />
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- सेरोटोनिन जैसे न्यूरो ट्रांसमिटर्स की कमी से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की समस्या हो सकती है।<br />
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- यूरेथेरा, प्रोस्टेट आदि में अगर कोई इंफेक्शन है, तो भी प्रीमैच्योर इजैकुलेशन हो सकता है।<br />
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- दिमाग में मौजूद सेक्स सेंटर एरिया में अगर कोई डिस्ऑर्डर है तो भी सीमेन का डिस्चार्ज तेजी से होता है।<br />
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- कुछ लोगों के पेनिस में उत्तेजना पैदा करने वाले न्यूरोट्रांसमिटर्स ज्यादा संख्या में होते हैं। इनकी वजह से ऐसे लोगों में टच करने के बाद उत्तेजना तेजी से आ जाती है और वे जल्दी क्लाइमैक्स पर पहुंच जाते हैं।<br />
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- कई बार एंग्जायटी, टेंशन और सीजोफ्रेनिया की वजह से भी ऐसा हो सकता है।<br />
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<b>दवाएं : </b>प्रीमैच्योर इजैकुलेशन की वजह को जानने के बाद उसके मुताबिक खाने की दवाएं दी जाती हैं। इनकी मदद से प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इसमें करीब दो महीने का वक्त लगता है। इन दवाओं के कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं।<br />
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<b>इंजेक्शन थेरपी:</b> अगर खाने की दवाओं से काम नहीं चलता तो इंजेक्शन थेरपी दी जाती है। इनसे तीन मिनट के अंदर पेनिस हार्ड हो जाता है और यह हार्डनेस 30 मिनट तक बरकरार रहती है। इसकी मदद से कोई भी शख्स सही तरीके से सेक्स कर सकता है। ये इंजेक्शन कुछ दिनों तक दिए जाते हैं। इसके बाद खुद-ब-खुद उस शख्स का अपने इजैकुलेशन पर कंट्रोल होने लगता है और फिर इन इंजेक्शन को छोड़ा जा सकता है।<br />
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<b>टोपिकल थेरपी : </b>यह टेंपररी ट्रीटमेंट है। इसमें कुछ खास तरह की क्रीम का यूज किया जाता है। इन क्रीम की मदद से डिस्चार्ज का टाइम बढ़ जाता है। इनका भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।<br />
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<b>सेक्स थेरपी </b>: दवाओं के साथ मरीज को कुछ एक्सरसाइज भी सिखाई जाती हैं। ये हैं :<br />
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<b>स्टॉप स्टार्ट टेक्निक</b> : पार्टनर की मदद से या मास्टरबेशन के माध्यम से उत्तेजित हो जाएं। जब आपको ऐसा लगे कि आप क्लाइमैक्स तक पहुंचने वाले हैं, तुरंत रुक जाएं। खुद को कंट्रोल करें और सुनिश्चित करें कि इजैकुलेशन न हो। लंबी गहरी सांस लें और कुछ पलों के लिए रिलैक्स करें। कुछ पलों बाद फिर से पेनिस को उत्तेजित करना शुरू कर दें। जब क्लाइमैक्स पर पहुंचने वाले हों, तभी रोक लें और रिलैक्स करें। इस तरह बार बार दोहराएं। कुछ समय बाद आप महसूस करेंगे कि शुरू करने और स्टॉप करने के बीच का समय धीरे धीरे ज्यादा हो रहा है। इसका मतलब है कि आप पहले के मुकाबले ज्यादा समय तक टिक रहे हैं। लगातार प्रैक्टिस करने से इजैकुलेशन कब हो इस पर काबू पाया जा सकता है।<br />
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<b>कीजल एक्सरसरइज </b>: कीजल एक्सरसाइज न सिर्फ प्रीमैच्योर इजैकुलेशन को कंट्रोल करने में सहायक है, बल्कि प्रोस्टेट से संबंधित समस्याएं भी इससे ठीक की जा सकती हैं। इसके लिए पेशाब करते वक्त स्क्वीज, होल्ड, रिलीज पैटर्न अपनाना होता है। यानी पेशाब का फ्लो शुरू होते ही मसल्स का स्क्वीज करें, कुछ पलों के लिए रुकें और फिर से रिलीज कर दें। इस दौरान इस प्रॉसेस का बार बार दोहराएं। इन सेक्स एक्सरसाइज की प्रैक्टिस अगर कोई शख्स चार हफ्ते तक लगातार कर लेता है तो उसके बाद वह 8 से 10 मिनट तक बिना इजैकुलेशन के इरेक्शन बरकरार रख सकता है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि काफी टाइम बाद सेक्स करने से भी व्यक्ति जल्दी स्खलित हो जाता है। ऐसे मामलों में इन एक्सरसाइजों को कर लिया जाए तो इस समस्या से भी निजात पाई जा सकती है।<br />
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<b>मास्टरबेशन</b><br />
सेक्स के दौरान पेनिस जो काम योनि में करता है, वही काम मास्टरबेशन के दौरान पेनिस मुट्ठी में करता है। मास्टरबेशन युवाओं का एक बेहद सामान्य व्यवहार है। जिन लोगों के पार्टनर नहीं हैं, उनके साथ-साथ मास्टरबेशन ऐसे लोगों में भी काफी कॉमन है, जिनका कोई सेक्सुअल पार्टनर है। जिन लोगों के सेक्सुअल पार्टनर नहीं हैं या जिनके पार्टनर्स की सेक्स में रुचि नहीं है, ऐसे लोग अपनी सेक्सुअल टेंशन को मास्टरबेशन की मदद से दूर कर सकते हैं। जो लोग प्रेग्नेंसी और एसटीडी के खतरों से बचना चाहते हैं, उनके लिए भी मास्टरबेशन उपयोगी है।<br />
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<b>नॉर्मल:</b> मास्टरबेशन बिल्कुल नॉर्मल है। सेक्स का सुख हासिल करने का यह बेहद सुरक्षित तरीका है और ताउम्र किया जा सकता है, लेकिन अगर यह रोजमर्रा की जिंदगी को ही प्रभावित करने लगे तो इसका सेहत और दिमाग दोनों पर गलत असर हो सकता है।<br />
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<b>कुछ तथ्य</b><br />
- सामान्य सेक्स के तीन तरीके होते हैं - पार्टनर के साथ सेक्स, मास्टरबेशन और नाइट फॉल। अगर पार्टनर से सेक्स कर रहे हें तो जाहिर है सीमेन बाहर आएगा। सेक्स नहीं करते, तो मास्टरबेशन के जरिये सीमेन बाहर आएगा। अगर कोई शख्स यह दोनों ही काम नहीं करता है तो उसका सीमेन नाइट फॉल के जरिये बाहर आएगा। सीमेन सातों दिन और चौबीसों घंटे बनता रहता है। सीमेन बनता रहता है, खाली होता रहता है।<br />
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- मास्टरबेशन करने से कोई शारीरिक या मानसिक कमजोरी नहीं आती।<br />
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- पेनिस में जितनी बार इरेक्शन होता है, उतनी बार मास्टरबेशन किया जा सकता है। इसकी कोई लिमिट नहीं है। हर किसी के लिए अलग-अलग दायरे हैं।<br />
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- इससे बाल गिरना, आंखों की कमजोरी, मुंहासे, वजन में कमी, नपुंसकता जैसी समस्याएं नहीं होतीं।<br />
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- सीमेन की क्वॉलिटी पर कोई असर नहीं होता। न तो सीमेन का कलर बदलता और न वह पतला होता है।<br />
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- इससे पेनिस के साइज पर भी कोई असर नहीं होता। जो लोग कहते हैं कि मास्टरबेशन से पेनिस का टेढ़ापन, पतलापन, नसें दिखना जैसी समस्याएं हो जाती हैं, वे खुद भी भ्रम में हैं और दूसरों को भी भ्रमित कर रहे हैं।<br />
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- कुछ लोगों को लगता है कि मास्टरबेशन करने के तुरंत बाद उन्हें कुछ कमजोरी महसूस होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। यह मन का वहम है।<br />
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- मास्टरबेशन एड्स और रेप जैसी स्थितियों को रोकने का अच्छा तरीका है।<br />
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- कामसूत्र या आयुर्वेद में कहीं यह नहीं लिखा है कि मास्टरबेशन बीमारी है।<br />
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- 13-14 साल की उम्र में लड़कों को इसकी जरूरत होने लगती है। कुछ लोग शादी के बाद भी सेक्स के साथ-साथ मास्टरबेशन करते रहते हैं। यह बिल्कुल नॉर्मल है।<br />
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<b>मिथ्स क्या हैं</b><br />
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1. पेनिस का साइज छोटा है तो सेक्स में दिक्कत होगी। बड़ा पेनिस मतलब सेक्स का ज्यादा मजा।<br />
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सचाई : छोटे पेनिस की बात नाकामयाब दिमाग में ही आती है। दुनिया में ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे पेनिस के स्टैंडर्ड साइज का पता किया सके। वैजाइना की सेक्सुअल लंबाई छह इंच होती है। इसमें से बाहरी एक तिहाई हिस्सा यानी दो इंच में ही ग्लांस तंतु होते हैं। अगर किसी महिला को उत्तेजित करना है, तो वह योनि के बाहरी एक तिहाई हिस्से से ही उत्तेजित हो जाएगी। जाहिर है, अगर उत्तेजित अवस्था में पुरुष का लिंग दो इंच या उससे ज्यादा है, तो वह महिला को संतुष्ट करने के लिए काफी है। ध्यान रखें, खुद और अपने पार्टनर की संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण चीज पेनिस की लंबाई नहीं होती, बल्कि यह होती है कि उसमें तनाव कैसा आता है और कितनी देर टिकता है। पेनिस की चौड़ाई का भी खास महत्व नहीं है। योनि इलास्टिक होती है। जितना पेनिस का साइज होगा, वह उतनी ही फैल जाएगी। बड़ा पेनिस किसी भी तरह से सेक्स में ज्यादा आनंद की वजह नहीं होता।<br />
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2. पेनिस में टेढ़ापन होना सेक्स की नजर से समस्या है।<br />
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सचाई : पेनिस में थोड़ा टेढ़ापन होता ही है। किसी भी शख्स का पेनिस बिल्कुल सीधा नहीं होता। यह या तो थोड़ा दायीं तरफ या फिर थोड़ा बायीं तरफ झुका होता है। इसकी वजह से पेनिस को वैजाइना में प्रवेश कराने में कोई दिक्कत नहीं होती है। ध्यान रखें, घर में दाखिल होना महत्वपूर्ण है, थोड़े दायें होकर दाखिल हों या फिर बायें होकर या फिर सीधे। ऐसे मामलों में इलाज की जरूरत तब ही समझनी चाहिए योनि में पेनिस का प्रवेश कष्टदायक हो।<br />
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3. बाजार में तमाम तेल हैं, जिनकी मालिश करने से पेनिस को लंबा मोटा और ताकतवर बनाया जा सकता है। इसी तरह तमाम गोलियां, टॉनिक आदि लेने से सेक्स पावर बढ़ोतरी होती है।<br />
<br />
सचाई : पेनिस पर बाजार में मिलने वाले टॉनिक का कोई असर नहीं होता, असर होता है उसके ऊपर बने सांड या घोड़े के चित्र का। इसी तरह जब पेनिस पर तेल की मालिश की जाती है, तो उस हाथ की स्नायु मजबूत होती हैं, जिससे तेल की मालिश की जाती है, लेकिन पेनिस की मसल्स पर इसका कोई भी असर नहीं होता।<br />
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4. पेनिस में नसें नजर आती हैं तो यह कमजोरी की निशानी है।<br />
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सचाई : पेनिस में अगर कभी नसें नजर आती भी हैं तो वे नॉर्मल हैं। उनका पेनिस की कमजोरी से कोई लेना देना नहीं है।<br />
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5. जिन लोगों के पेनिस सरकमसाइज्ड (इस स्थिति में पेनिस की फोरस्किन पीछे की तरफ रहती है और ग्लांस पेनिस हमेशा बाहर रहता है) हैं, वे सेक्स में ज्यादा कामयाब होते हैं।<br />
<br />
सचाई : सरकमसाइज्ड पेनिस का सेक्स की संतुष्टि से कोई लेना-देना नहीं है। यह तब कराना चाहिए जब उत्तेजित अवस्था में पुरुष की फोरस्किन पीछे हटाने में दिक्कत हो।<br />
<br />
6. सेक्स पावर बढ़ाने नुस्खे, गोलियां (आयुर्वेदिक और एलोपैथिक), मसाज ऑयल, शिलाजीत आदि बाजार में हैं। इनसे सेक्स पावर बढ़ाई जा सकती है।<br />
<br />
सचाई : बाजार में आमतौर मिलने वाली ऐसी गोलियों और दवाओं से सेक्स पावर नहीं बढ़ती। आयुर्वेद के नियम कहते हैं कि मरीज को पहले डॉक्टर से मिलना चाहिए और फिर इलाज करना चाहिए। हर मरीज के लिए उसके हिसाब से दवा दी जाती है, दवाओं को जनरलाइज नहीं किया जा सकता।<br />
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एक पक्ष यह भी<br />
यूथ्स की सेक्स समस्याओं पर एलोपैथी और आयुर्वेद की सोच में अंतर मिलता है। जहां एक तरफ एलोपैथी में माना जाता है कि सीमेन शरीर से बाहर निकलने से शरीर और दिमाग को कोई नुकसान नहीं होता, वहीं आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करने वाले लोग सीमेन के संरक्षण की बात करते हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टरों के मुताबिक :<br />
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- महीने में दो से आठ बार तक नाइट फॉल स्वाभाविक है, लेकिन इससे ज्यादा होने लगे, तो यह सेहत के लिए नुकसानदायक है।<br />
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- मास्टरबेशन करने से याददाश्त कमजोर होती है। एकाग्रता और सेहत पर बुरा असर होता है।<br />
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- प्रीमैच्योर इजैकुलेशन और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को आयुर्वेद में दवाओं के जरिए ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए मरीज को खुद डॉक्टर से मिलकर इलाज कराना चाहिए। दरअसल, आयुर्वेद में मरीज विशेष के लक्षणों और हाल के हिसाब से दवा दी जाती है, जिनका फायदा होता है।<br />
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- बाजार में आयुर्वेद के नाम पर बिकने वाले मालिश करने के तेल, कैपसूल और ताकत की दवाएं जनरल होती हैं। इन बाजारू दवाओं से सेक्स पावर बढ़ाने या पेनिस को लंबा-मोटा करने में कोई मदद नहीं मिलती। ये चीजें आयुर्वेद को बदनाम करती हैं।<br />
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- विज्ञापनों और नीम-हकीमों से दूर रहें। तमाम नीम-हकीम आयुर्वेद के नाम पर युवकों को बेवकूफ बनाकर पैसा ठगते हैं। इनसे बचें और हमेशा किसी योग्य डॉक्टर से ही संपर्क करें।<br />
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- मर्यादित सेक्स करने से जिंदगी में यश बढ़ता है और परिवार में बढ़ोतरी होती है, जबकि अमर्यादित और बहुत ज्यादा सेक्स रोगों को बढ़ाता है।<br />
<br />
- मल-मूत्र का वेग होने पर और व्रत, शोक और चिंता की स्थिति में सेक्स से परहेज करना चाहिए।<br />
<br />
- जो चीजें शरीर को सेहतमंद रखने में मदद करती हैं, वही चीजें सेक्स की पावर बढ़ाने में भी मददगार हैं। ऐसे में अगर आप स्वास्थ्य के नियमों का पालन कर रहे हैं और सेहतमंद खाना ले रहे हैं तो आपको सेक्स पावर बढ़ाने वाली चीजें अलग से लेने की कोई जरूरत नहीं है।<br />
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<b>एक्सपर्ट्स पैनल</b><br />
डॉक्टर प्रकाश कोठारी, फाउंडर अडवाइजर, वर्ल्ड असोसिएशन फॉर सेक्सॉलजी<br />
डॉक्टर अनूप धीर,<br />
डॉक्टर एल. के. त्रिपाठी, आयुर्वेदिन फिजिशियन<br />
<b>:NBT</b>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-64095990296384314442010-07-25T14:03:00.000+05:302010-07-25T14:03:03.623+05:30नाड़ी दोषनाड़ी शब्द गमन धातु से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है सतत गतिमान रहना या गतिशील होना। योग के ग्रंथों में नाड़ी शब्द का प्रयोग ऐसे अंगों के लिए हुआ जो खाद्य पदार्थ, पेय, रक्त, वायु और नाड़ी संवेगों के परिवहन के लिए बड़े या छोटे मार्ग के रूप में कार्य करते हैं।<br />
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श्रेष्ठ आयुर्वेदज्ञ नाड़ी देखकर ही रोग का पता लगा लेते हैं और उसी के हिसाब से दवा देते हैं, लेकिन योग तो सभी नाड़ियों को स्वस्थ करने के उपाय बताता है जिससे की किसी भी प्रकार का रोग ही ना हो। योग में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार से ज्यादा बताई गई है और इसका मूल उदगम स्त्रोत नाभि स्थान है। उक्त नाड़ियों में भी दस नाड़ियाँ मुख्य मानी गई हैं। ये नाड़ियाँ शरीर में सुस्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी रहती है और योग के अभ्यास से इन पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।<br />
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<strong>प्रमुख 10 नाड़ियाँ</strong> : 1.इड़ा (नाभि से बाईं नासिका), 2. पिंगला (नाभि से दाईं नासिका),3. सुषुम्ना (नाभि से मध्य में), 4.शंखिनी(नाभि से गुदा), 5. कृकल (नाभि से लिंग तक), 6.पूषा (नाभि से दायाँ कान), 7.जसनी (नाभि से बाया कान), 8.गंधारी (नाभि से बायीं आँख), 9.हस्तिनी (नाभि से दाईं आँख), 10.लम्बिका (नाभि से जीभ)।<br />
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<strong>अस्वस्थ होने की पहचान</strong> : जिनका शरीर भारी है, कफ, पित्त, आदि की शिकायत है या जो आलस्य से ग्रस्त है तथा जिसमें किसी भी कार्य के प्रति अरुचि हैं उनकी नाड़ी अस्वस्थ मानी जाती है। इसके अलावा जो संभोग के क्षणों में भी स्वयं को अक्षम पाता है या जो सदा स्वयं को कमजोर महसूस करता है आदि। नाड़ियों के कमजोर रहने से व्यक्ति अन्य कई रोगों से ग्रस्त होने लगता है।<br />
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<strong>अस्वस्थ होने का कारण</strong> : वायु प्रदूषण, शराब का सेवन, अन्य किसी प्रकार का नशा, अनियमित खान पान, क्रोध, अनिंद्रा, तनाव और अत्यधिक काम और अत्यधिक संभोग।<br />
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<strong>स्वस्थ की पहचान</strong> : यदि आप हल्का और स्वस्थ महसूस करते हैं या आप स्फूर्तिवान हो तो यह माना जाता है कि नाड़ियाँ अधिक गंदी नहीं हैं। शुद्धि की पहचान यह भी है कि शरीर का पतला व हल्का होना, शरीर व चेहरे की क्रांति बढ़ जाना, आरोग्य बना रहना, स्वयं को शक्तिशाली महसूस करना, पाचन क्रिया हमेशा ठीक रहना, ज्यादा से ज्यादा वायु अंदर लेकर कुम्भक लगाकर ज्यादा समय तक रोककर रखना आदि। इसके अलावा आप कोई सा भी शारीरिक या मानसिक मेहनत का कार्य कर रहे हैं तो कभी भी आपको थकान महसूस नहीं होगी। <br />
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<strong>कैसे रखें नाड़ियों को स्वस्थ</strong> : सामान्यत: नाड़ियाँ दो तरीके से स्वस्थ्य, मजबूत और हष्ट-पुष्ट बनी रहती है- 1.यौगिक आहार और 2.प्राणायाम।<br />
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<strong>यौगिक आहार</strong> : यौगिक आहार में गेहूँ, चावल, जौ जैसे सुंदर अन्न। दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिसरी, मधु जैसे फल-दूध। जीवन्ती, बथुआ, चौलाई, मेघनाद एवं पुनर्नवा जैसे पाँच प्रकार के शाक। मूँग, हरा चना आदि। फल और फलों का ज्यूस ज्यादा लाभदायक है।<br />
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<strong>प्राणायाम</strong> : प्राणायाम की शुरुआत अनुलोम-विलोम से करें इसमें कुंभक की अवधि कुछ हद तक बढ़ाते जाएँ। फिर कपालभाती और भस्त्रिका का अभ्यास मौसम और शारीरिक स्थिति अनुसार करें।<br />
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<strong>नाड़ी</strong> <strong>शुद्धि</strong> <strong>के</strong> <strong>लाभ</strong> : स्वस्थ और मजबूत नाड़ियाँ मजबूत शरीर और लम्बी उम्र की पहचान है। इससे उम्र बढ़ने के बाद भी जवानी बरकरार रहती है। सदा स्फूर्ति और जोश कायम रहता है। मजबूत नाड़ियों में रक्त संचार जब सुचारू रूप से चलता है तो रक्त संबंधी किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता। हृदय और फेंफड़ा मजबूत बना रहता है। श्वास नलिकाओं से भरपूर वायु के आवागमन से दिमाग और पेट की गर्मी छँटकर दोनों स्वस्थ बने रहते हैं। पाचन क्रिया सही रहती है और संभोग क्रिया में भी लाभ मिलता है।<br />
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<strong>- वेबदुनिया/ अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' </strong>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-10810570334153092332010-07-25T13:58:00.000+05:302010-07-25T13:58:14.287+05:30प्यार भरे सेक्स की शर्त'दो अहंकार' आपस में कभी नहीं मिल सकते और जब तक आप अपने सहयोगी को दूसरा समझते हैं या उससे प्यार नहीं करते हैं तब तक इस जोड़ का कोई मतलब भी नहीं। पवित्रता के लिए प्यार का होना आवश्यक है। यदि आप अपने सहयोगी से प्यार नहीं करते हैं तो यह महज जंगली प्रक्रिया होगी।<br />
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<i>सेक्स और रोमांस</i> दोनों अलग-अलग सब्जेक्ट हो सकते हैं, लेकिन जिस सेक्स क्रिया में एक दूसरे के प्रति प्यार नहीं वह महज कोरी सेक्स क्रिया ही होगी। जानने में आता है कि बहुत से पति-पत्नी में प्यार नहीं होता फिर भी वे सेक्स करते हैं, सिर्फ इसलिए की यह वैवाहिक जीवन की एक प्रक्रिया है। पत्नी की इच्छा नहीं है तब भी सेक्स और है तब पति खुद का स्वार्थ पूरा करके अलग हो लेता है। यह सब इस बात की सूचना है कि पति-पत्नी में प्यार जैसी कोई भावना नहीं है। योग से इस भावना को जाग्रत किया जा सकता है।<br />
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योग कहता है कि यदि आप खुद भीतर से बँटे हैं तो आप स्वयं को शांतिपूर्ण और शक्तिपूर्ण महसूस नहीं कर सकते। निश्चित तौर पर योग आपके स्वाभाविक सेक्स और प्यारपूर्ण संबंधों के लिए बहुत ही सहयोगी हो सकता है। योग का अर्थ होता है जोड़, मिलन। जब हम सेक्स जीवन की बात करते हैं तो यह जोड़ और मिलन आवश्यक है।<br />
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<b>कैसे हो दूसरे से प्यार</b> :<br />
हम मुख्यत: तीन भवन में निवास करते हैं- शरीर, प्राण और मन। शरीर कुछ और, प्राण कुछ और तथा मन कुछ और कहता है। तीनों में सामंजस्यता नहीं होने के कारण तीनों ही रोग से ग्रसित हो जाते हैं। यही हमारे फस्ट्रेशन का कारण है और इस फस्ट्रेशन को हम अक्सर अपने घर में ही निकालते हैं।<br />
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दिमाग में द्वंद्व है तो हम किसी भी क्षेत्र में अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते हैं। दूसरों के प्रति प्यार होने के लिए हमें स्वयं से प्यार होना भी जरूरी है। यदि आप मानसिक द्वंद्व से घिरे हैं तो कभी तय नहीं कर पाएँगे कि सही क्या और गलत क्या। तो सबसे पहले इस द्वंद्व को मिटाने के लिए अपनी श्वासों पर ध्यान दें और इन्हें लय में लाएँ। इसके लिए प्राणायाम का सहारा लें।<br />
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<b>प्यार भरे सेक्स की शर्त :</b><br />
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</b><b>शरीर </b>: प्राणायाम के साथ आप कुछ ऐसे आसनों का चयन करें जो अपकी बॉडी को फ्लेक्सिबल बना सके। वह कौन से योगासन हैं, जिन्हें करने से ऊर्जा का संचार होता है, यह जानने का प्रयास करें और फिर साथ-साथ उन आसनों को करें।<br />
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<b>प्राण </b>: बेहतर रिलेशनशिप ही बेहतर प्यार भरे सेक्स को जन्म देती है। वाद-विवाद के बीच आपसी संवाद खो न जाए, इसका ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसके लिए अपनी साँसों पर ध्यान दें जो आपके भीतर क्रोध और अहंकार उत्पन्न करती हैं। प्राणायम के प्रयोग इसमें आपकी मदद कर सकते हैं। कपालभाती और भस्त्रिका से द्वंद्व और फ्रस्टेशन का निकाल हो जाता है।<br />
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<b>मन </b>: मन में जीना अर्थात पागलपन में जीना है। ज्यादा मानसिक न बनें। अपने मन से ज्यादा अपने सहयोगी के मन की सुनें। मन में संतुलन लाएँ, क्योंकि बाह्यमुखी व्यक्ति बहुत ज्यादा बेचैन और अंतरमुखी बहुत ज्यादा कुंठाग्रस्त रहते हैं। इससे आपका सेक्स जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके लिए ध्यान का सहारा लें और मन को एक स्थिर झील की तरह बनाएँ।<br />
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<strong>योगा</strong> <strong>पैकेज</strong> : सूर्यनमस्कार, पादहस्तासन, पश्चिमोत्तनासन, त्रिकोणासन, सुप्तवज्रासन, उष्ट्रासन, धनुरासन, नौकासन, चक्रासन, योगमुद्रासन, गोमुखासन, सिंहासन। प्राणायम में कपालभाती, भस्त्रिका। नेति में करें, सूत्र नेति। शुरुआत करें अंग संचालन से यह सब कुछ योग शिक्षक की देख-रेख में।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-77834881529934556362010-07-25T13:39:00.000+05:302010-07-25T13:39:06.041+05:30काम के 10 सूत्रआज की भागदौड़ की जिंदगी में जरूरी है हमारे मन और शरीर के लिए समय निकालना। जवानी में संभल गए तो ठीक अन्यथा तो डॉक्टर भरोसे ही जिंदगी समझों। इसीलिए हम लाएँ हैं काम के 10 सूत्र, जिससे जीवन अनुशासनबद्ध हो सके।<br />
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1.<b>यम</b>- यम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह न करना और अस्तेय का अर्थ है किसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।<br />
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2.<strong>नियम</strong>- नियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं के विचारों का अध्ययन करना और ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है कि सिर्फ 'एक परमेश्वर' के प्रति समर्पण करना। कहते हैं कि एक साधे सब सधे और सब साध तो एक भी ना सधे। नियम से ही जिंदगी में अनुशासन आता है।<br />
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3.<strong>आसन</strong>- आसन तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ्य बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।<br />
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4.<strong>अंगसंचालन/हास्य योग</strong>- यदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।<br />
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5.<strong>प्रणायाम</strong>- प्राणायाम तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।<br />
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6.<strong>ध्यान</strong>- ध्यान करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।<br />
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7.<strong>मुद्राएँ-</strong> यहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।<br />
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8.<strong>क्रियाएँ</strong>- क्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।<br />
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9.<strong>आहार</strong>- यह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।<br />
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10.<strong>विहार</strong>- विहार करना बौद्ध काल में प्रचलित था। खुली हवा में पैदल भी चला करें। कहते हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई। जरा घुमने-फिरने जाएँ और थोड़ा नंगे पैर भी चले। योग और आयुर्वेद में कहा गया है कि पैर यदि ज्यादा देर तक ढँके या बंधे हैं तो इसका असर हमारी श्वास पर होता है। <br />
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तो यह है काम के 10 सूत्र। प्रत्येक सूत्र में से यदि सिर्फ एक उपसूत्र का ही चयन करें तो भी 10 ही होते हैं जो बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। <br />
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<strong>Resource:</strong> <a href="http://msnyuva.webdunia.com/news/headlines/1007/25/1100725007_1.htm">http://msnyuva.webdunia.com/news/headlines/1007/25/1100725007_1.htm</a>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-18564716918205275152010-07-21T14:05:00.001+05:302010-07-21T14:06:58.362+05:30उपवास : सर्वश्रेष्ठ औषधिदुनिया के सभी धर्मों में उपवास का महत्व है। खासतौर पर बीमार होने के बाद उपवास को सबसे अच्छा इलाज माना गया है। आयुर्वेद में बीमारी को दूर करने के लिए शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने की बात कही जाती है और उपवास करने से इन्हें शरीर से निकाला जा सकता है। इसीलिए 'लंघन्म सर्वोत्तम औषधं' यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है।<br />
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संसार के सभी धर्मों में उपवास को ईश्वर के निकट पहुँचने का एक सबसे कारगर उपाय माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के परे यह निर्विवाद सत्य है कि उपवास करने से शरीर स्वस्थ रहता है। संभवतः इसके महत्व को समझते हुए सभी धर्मों के प्रणेताओं ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ दिया है ताकि लोग उपवास के अनुशासन में बँधे रहें। <br />
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आयुर्वेद समेत दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों में उपवास यानी पेट को खाली रखने की प्रथा रही है। हालाँकि हर बीमारी का इलाज भी उपवास नहीं लेकिन यह अधिकांश समस्याओं में कारगर रहता है। दरअसल उपवास का धार्मिक अर्थ न ग्रहण करते हुए इसका चिकित्सकीय रूप समझना चाहिए। पेट को खाली रखने का ही अर्थ उपवास है। <br />
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यह आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान, कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के कई प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस और कई तरह की मानसिक बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इससे कैंसर की बीमारी तक ठीक हो सकती है क्योंकि उपवास से ट्यूमर के टुकड़े तक हो जाते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि लीवर के कैंसर में उपवास कारगर नहीं होता।<br />
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उपवास के अनगिनत फायदे हैं। उपवास जितना लंबा होगा शरीर की ऊर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। इससे स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियाँ पुनः सक्रिय होकर काम करने लगती हैं। उपवास आपके आत्मविश्वास को इतना बढ़ा सकता है ताकि आप अपने शरीर और जीवन और क्षुधा पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकें। <br />
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हमारा शरीर एक स्वनियंत्रित एवं खुद को ठीक करने वाली प्रजाति का हिस्सा है। उपवास के जरिए यह अपने मेटॉबॉलिज्म को सामान्य स्तर पर ले आता हैतथा ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकता है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-18401801001230946722010-07-21T13:42:00.002+05:302010-07-21T13:51:23.418+05:30एक्सरसाइज के साथ करें रेस्ट भीएक तरफ जहाँ फिटनेस एक्सपर्ट एक्सरसाइज करने की हिमायत करते हैं, उनमें से कई तो जिम में थका देने वाली एक्सरसाइज के बाद की जाने वाली रेस्ट पर भी ध्यान नहीं देते हैं। वहीं कुछ फिटनेस एक्सपर्ट यह कहते हैं कि एक्सरसाइज के बाद रिलेक्स न होना एक बड़ी गलती है। एक्सरसाइज के बाद रेस्ट बहुत जरूरी है। इसी वजह से वे लोग जो हेवी एक्सरसाइज हैं, वे बाद में बॉडी पेन की शिकायत करते हैं।<br />
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फिटनेस के दीवाने हीरो रितिक रोशन का कहना है कि 'शरीर जिम में नहीं बनता है, यह तब बनता है जब आप आराम कर रहे होते हैं। चाहे आपको वजन कम करना हो या फिर मसल बनाना, अच्छी नींद लें।' यदि कोई जितना जरूरी है उतना आराम करता है, तो वह मसल्स की तकलीफ से बच सकता है। हाई इंटेसिटी वेट ट्रेनिंग में भी ट्रेनिंग के बाद के विश्राम ही मसल्स बनाते हैं।<br />
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आपकी सारी कोशिशों का रिजल्ट इसी दौरान मिलता है। तो यदि आप एक्सरसाइज के बाद के समय आराम नहीं करते हैं तो वे सारे प्रयास जो आपने व्यायाम के दौरान किए थे, व्यर्थ हो जाते हैं। स्टेटिक स्ट्रैच करके या शवासन करके आप अपने मसल्स को आराम दे सकते हैं। यह आपके शरीर से एड्रीनलीन की मात्रा कम करता है और आपके दिल के धड़कने की गति को संतुलित करता है। <br />
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एक्सरसाइज के बाद पानी पीना, संतरा आदि फल खाना भी अच्छा है। एक्सरसाइज के दौरान भी मसल्स को रिलेक्स करने की आवश्यकता होती है। यदि आप मसल्स को टोन करने वाला व्यायाम कर रहे हैं तो इसके हर सेट के बाद आपको 30 से 35 मिनट का समय देना चाहिए। <br />
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मसल्स को पर्याप्त आराम न मिलने से थकान होती है या फिर लगातार दर्द बने रहने से आपके शरीर को कोई क्षति हो सकती है। इसके साथ ही एक्सरसाइज करने के फायदे भी नहीं मिल पाते हैं। पीठ के बल जमीन पर लेटकर धीरे-धीरे साँस लेना और छोड़ना कड़े एक्सरसाइज के बाद आराम करने का सबसे बेहतर तरीका है। साँस लें और पाँच तक गिनें फिर साँस छोड़ दें। ध्यान का अभ्यास आपके शरीर के ही नहीं, मन के लिए भी अच्छा है।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-35479847803606239672010-07-14T12:36:00.000+05:302010-07-14T12:36:20.454+05:30दालचीनी और शहद का संगम<div class="wdp_articleRImg"><div><div style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img alt="" border="0" class="wdp_img" height="200" hspace="4" src="http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/health/1003/28/images/img1100328053_1_2.jpg" vspace="4" width="181" /></div></div>दालचीनी सुगंधित, पाचक, उत्तेजक, और बैक्टीरियारोधी है। यह पेट रोग, इंफ्यूएंजा, टाइफाइड, टीबी और कैंसर जैसे रोगों में उपयोगी पाई गई हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि दालचीनी सिर्फ गरम मसाला ही नहीं, बल्कि एक औषधि भी है।<br />
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शहद को कौन नहीं जानता! मधुमक्खियों की कड़ी मेहनत का फल है शहद। कई तरह की शर्कराएँ जैसे ग्लूकोज, फ्रुक्टोज और सुक्रोज का भंडार है शहद। इसके साथ ही इसमें तरह-तरह के अमीनो अम्ल और लिपिड भी मिलते हैं। शहद शीतल, स्वादिष्ट तथा कृमिनाशक है। श्वास रोग, हिचकी और अतिसार में यह उपयोगी है। क्षयरोग को नष्ट करता है और सबसे खास बात यह है कि यह योगवाही है अर्थात जिसके साथ इसका योग हो, उसके समान गुण करने वाली है।<br />
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दालचीनी और शहद के मिश्रण को सोने पर सुहागा कहा जाता है। ऐसा कौन-सा रोग है, जिसका इलाज इस योग द्वारा नहीं किया जा सकता है! गठिया, दमा, पथरी, दाँत का दर्द, सर्दी-खाँसी, पेट रोग, थकान, यहाँ तक कि गंजेपन का भी इलाज इस मिश्रण के द्वारा किया जा सकता है। आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में तो शहद एक शक्तिवर्धक औषधि के रूप में लंबे समय से प्रयुक्त की जा रही है। इसके विभिन्न गुण अब दुनिया भर में किए जा रहे शोधों से उजागर हो रहे हैं।<br />
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कनाडा से प्रकाशित 'वीकली वर्ल्ड न्यूज' में पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के आधार पर दालचीनी और शहद से ठीक होने वाले रोगों की एक सूची दी गई है। स्कीन के साथ बॉडी को भी चमकदार और हेल्दी बनाने के लिए इन दोनों का उपयोग करना चाहिए।<br />
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दालचीनी और शहद का योग पेट रोगों में भी लाभकारी है। पेट यदि गड़बड़ है तो इसके लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है और पेट के छाले भी खत्म हो जाते हैं। खाने से पहले दो चम्मच शहद पर थोड़ा-सा दालचीनी पावडर बुरककर चाटने से एसिडिटी में राहत मिलती है और खाना अच्छे से पचता है।</div>Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3380959596437284719.post-26802822314139268752010-07-14T12:15:00.000+05:302010-07-14T12:15:41.437+05:30गर्मी में लगाएँ ये पौधेतपती हुई गर्मी से हर कोई परेशान है। सुबह होते ही गर्मी का कहर शुरू हो जाता है। दिन भर चलने वाली लू से न केवल लोग बेहाल हैं बल्कि इस प्रचंड गर्मी पेड़-पौधे भी सूख रहे हैं। ऐसी गर्मी से न केवल अपने आप को बचाने बल्कि पेड़-पौधों की विशेष देखभाल की भी जरुरत है।<br />
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थोड़ी सी लापरवाही से घर की साज-सज्जा और सुंदरता बढ़ा रहे पौधे सूख कर खराब हो सकते हैं। इसलिए इस मौसम में न सिर्फ पौधों की देखभाल की जरुरत है बल्कि घर में ऐसे पौधों का चयन किया जाना चाहिए जो कि गर्मी के मौसम में भी हरे भरे और सुंदर रहें।<br />
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-साइकस पाम, <br />
-फिनिक्स पाम, <br />
-युका, <br />
-लोलीना, <br />
-यूफोरविया, <br />
-मिली, <br />
-बोगन वैली, <br />
-यूनीप्रेस <br />
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ऐसे पौधे हैं जिन पर गर्मी का बहुत अधिक असर नहीं पड़ता है। नियमित रूप से पानी देने से ये पौधे गर्मी में भी हरे भरे रहते हैं।Pradeep Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16599944266800316442noreply@blogger.com0