1.यम- यम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह न करना और अस्तेय का अर्थ है किसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।
2.नियम- नियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं के विचारों का अध्ययन करना और ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है कि सिर्फ 'एक परमेश्वर' के प्रति समर्पण करना। कहते हैं कि एक साधे सब सधे और सब साध तो एक भी ना सधे। नियम से ही जिंदगी में अनुशासन आता है।
3.आसन- आसन तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ्य बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।
4.अंगसंचालन/हास्य योग- यदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।
5.प्रणायाम- प्राणायाम तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।
6.ध्यान- ध्यान करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।
7.मुद्राएँ- यहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।
8.क्रियाएँ- क्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।
9.आहार- यह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।
10.विहार- विहार करना बौद्ध काल में प्रचलित था। खुली हवा में पैदल भी चला करें। कहते हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई। जरा घुमने-फिरने जाएँ और थोड़ा नंगे पैर भी चले। योग और आयुर्वेद में कहा गया है कि पैर यदि ज्यादा देर तक ढँके या बंधे हैं तो इसका असर हमारी श्वास पर होता है।
तो यह है काम के 10 सूत्र। प्रत्येक सूत्र में से यदि सिर्फ एक उपसूत्र का ही चयन करें तो भी 10 ही होते हैं जो बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।
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Resource: http://msnyuva.webdunia.com/news/headlines/1007/25/1100725007_1.htm
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