नाड़ी शब्द गमन धातु से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है सतत गतिमान रहना या गतिशील होना। योग के ग्रंथों में नाड़ी शब्द का प्रयोग ऐसे अंगों के लिए हुआ जो खाद्य पदार्थ, पेय, रक्त, वायु और नाड़ी संवेगों के परिवहन के लिए बड़े या छोटे मार्ग के रूप में कार्य करते हैं।
श्रेष्ठ आयुर्वेदज्ञ नाड़ी देखकर ही रोग का पता लगा लेते हैं और उसी के हिसाब से दवा देते हैं, लेकिन योग तो सभी नाड़ियों को स्वस्थ करने के उपाय बताता है जिससे की किसी भी प्रकार का रोग ही ना हो। योग में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार से ज्यादा बताई गई है और इसका मूल उदगम स्त्रोत नाभि स्थान है। उक्त नाड़ियों में भी दस नाड़ियाँ मुख्य मानी गई हैं। ये नाड़ियाँ शरीर में सुस्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी रहती है और योग के अभ्यास से इन पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
प्रमुख 10 नाड़ियाँ : 1.इड़ा (नाभि से बाईं नासिका), 2. पिंगला (नाभि से दाईं नासिका),3. सुषुम्ना (नाभि से मध्य में), 4.शंखिनी(नाभि से गुदा), 5. कृकल (नाभि से लिंग तक), 6.पूषा (नाभि से दायाँ कान), 7.जसनी (नाभि से बाया कान), 8.गंधारी (नाभि से बायीं आँख), 9.हस्तिनी (नाभि से दाईं आँख), 10.लम्बिका (नाभि से जीभ)।
अस्वस्थ होने की पहचान : जिनका शरीर भारी है, कफ, पित्त, आदि की शिकायत है या जो आलस्य से ग्रस्त है तथा जिसमें किसी भी कार्य के प्रति अरुचि हैं उनकी नाड़ी अस्वस्थ मानी जाती है। इसके अलावा जो संभोग के क्षणों में भी स्वयं को अक्षम पाता है या जो सदा स्वयं को कमजोर महसूस करता है आदि। नाड़ियों के कमजोर रहने से व्यक्ति अन्य कई रोगों से ग्रस्त होने लगता है।
अस्वस्थ होने का कारण : वायु प्रदूषण, शराब का सेवन, अन्य किसी प्रकार का नशा, अनियमित खान पान, क्रोध, अनिंद्रा, तनाव और अत्यधिक काम और अत्यधिक संभोग।
स्वस्थ की पहचान : यदि आप हल्का और स्वस्थ महसूस करते हैं या आप स्फूर्तिवान हो तो यह माना जाता है कि नाड़ियाँ अधिक गंदी नहीं हैं। शुद्धि की पहचान यह भी है कि शरीर का पतला व हल्का होना, शरीर व चेहरे की क्रांति बढ़ जाना, आरोग्य बना रहना, स्वयं को शक्तिशाली महसूस करना, पाचन क्रिया हमेशा ठीक रहना, ज्यादा से ज्यादा वायु अंदर लेकर कुम्भक लगाकर ज्यादा समय तक रोककर रखना आदि। इसके अलावा आप कोई सा भी शारीरिक या मानसिक मेहनत का कार्य कर रहे हैं तो कभी भी आपको थकान महसूस नहीं होगी।
कैसे रखें नाड़ियों को स्वस्थ : सामान्यत: नाड़ियाँ दो तरीके से स्वस्थ्य, मजबूत और हष्ट-पुष्ट बनी रहती है- 1.यौगिक आहार और 2.प्राणायाम।
यौगिक आहार : यौगिक आहार में गेहूँ, चावल, जौ जैसे सुंदर अन्न। दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिसरी, मधु जैसे फल-दूध। जीवन्ती, बथुआ, चौलाई, मेघनाद एवं पुनर्नवा जैसे पाँच प्रकार के शाक। मूँग, हरा चना आदि। फल और फलों का ज्यूस ज्यादा लाभदायक है।
प्राणायाम : प्राणायाम की शुरुआत अनुलोम-विलोम से करें इसमें कुंभक की अवधि कुछ हद तक बढ़ाते जाएँ। फिर कपालभाती और भस्त्रिका का अभ्यास मौसम और शारीरिक स्थिति अनुसार करें।
नाड़ी शुद्धि के लाभ : स्वस्थ और मजबूत नाड़ियाँ मजबूत शरीर और लम्बी उम्र की पहचान है। इससे उम्र बढ़ने के बाद भी जवानी बरकरार रहती है। सदा स्फूर्ति और जोश कायम रहता है। मजबूत नाड़ियों में रक्त संचार जब सुचारू रूप से चलता है तो रक्त संबंधी किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता। हृदय और फेंफड़ा मजबूत बना रहता है। श्वास नलिकाओं से भरपूर वायु के आवागमन से दिमाग और पेट की गर्मी छँटकर दोनों स्वस्थ बने रहते हैं। पाचन क्रिया सही रहती है और संभोग क्रिया में भी लाभ मिलता है।
- वेबदुनिया/ अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
Sunday, July 25, 2010
प्यार भरे सेक्स की शर्त
'दो अहंकार' आपस में कभी नहीं मिल सकते और जब तक आप अपने सहयोगी को दूसरा समझते हैं या उससे प्यार नहीं करते हैं तब तक इस जोड़ का कोई मतलब भी नहीं। पवित्रता के लिए प्यार का होना आवश्यक है। यदि आप अपने सहयोगी से प्यार नहीं करते हैं तो यह महज जंगली प्रक्रिया होगी।
सेक्स और रोमांस दोनों अलग-अलग सब्जेक्ट हो सकते हैं, लेकिन जिस सेक्स क्रिया में एक दूसरे के प्रति प्यार नहीं वह महज कोरी सेक्स क्रिया ही होगी। जानने में आता है कि बहुत से पति-पत्नी में प्यार नहीं होता फिर भी वे सेक्स करते हैं, सिर्फ इसलिए की यह वैवाहिक जीवन की एक प्रक्रिया है। पत्नी की इच्छा नहीं है तब भी सेक्स और है तब पति खुद का स्वार्थ पूरा करके अलग हो लेता है। यह सब इस बात की सूचना है कि पति-पत्नी में प्यार जैसी कोई भावना नहीं है। योग से इस भावना को जाग्रत किया जा सकता है।
योग कहता है कि यदि आप खुद भीतर से बँटे हैं तो आप स्वयं को शांतिपूर्ण और शक्तिपूर्ण महसूस नहीं कर सकते। निश्चित तौर पर योग आपके स्वाभाविक सेक्स और प्यारपूर्ण संबंधों के लिए बहुत ही सहयोगी हो सकता है। योग का अर्थ होता है जोड़, मिलन। जब हम सेक्स जीवन की बात करते हैं तो यह जोड़ और मिलन आवश्यक है।
कैसे हो दूसरे से प्यार :
हम मुख्यत: तीन भवन में निवास करते हैं- शरीर, प्राण और मन। शरीर कुछ और, प्राण कुछ और तथा मन कुछ और कहता है। तीनों में सामंजस्यता नहीं होने के कारण तीनों ही रोग से ग्रसित हो जाते हैं। यही हमारे फस्ट्रेशन का कारण है और इस फस्ट्रेशन को हम अक्सर अपने घर में ही निकालते हैं।
दिमाग में द्वंद्व है तो हम किसी भी क्षेत्र में अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते हैं। दूसरों के प्रति प्यार होने के लिए हमें स्वयं से प्यार होना भी जरूरी है। यदि आप मानसिक द्वंद्व से घिरे हैं तो कभी तय नहीं कर पाएँगे कि सही क्या और गलत क्या। तो सबसे पहले इस द्वंद्व को मिटाने के लिए अपनी श्वासों पर ध्यान दें और इन्हें लय में लाएँ। इसके लिए प्राणायाम का सहारा लें।
प्यार भरे सेक्स की शर्त :
शरीर : प्राणायाम के साथ आप कुछ ऐसे आसनों का चयन करें जो अपकी बॉडी को फ्लेक्सिबल बना सके। वह कौन से योगासन हैं, जिन्हें करने से ऊर्जा का संचार होता है, यह जानने का प्रयास करें और फिर साथ-साथ उन आसनों को करें।
प्राण : बेहतर रिलेशनशिप ही बेहतर प्यार भरे सेक्स को जन्म देती है। वाद-विवाद के बीच आपसी संवाद खो न जाए, इसका ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसके लिए अपनी साँसों पर ध्यान दें जो आपके भीतर क्रोध और अहंकार उत्पन्न करती हैं। प्राणायम के प्रयोग इसमें आपकी मदद कर सकते हैं। कपालभाती और भस्त्रिका से द्वंद्व और फ्रस्टेशन का निकाल हो जाता है।
मन : मन में जीना अर्थात पागलपन में जीना है। ज्यादा मानसिक न बनें। अपने मन से ज्यादा अपने सहयोगी के मन की सुनें। मन में संतुलन लाएँ, क्योंकि बाह्यमुखी व्यक्ति बहुत ज्यादा बेचैन और अंतरमुखी बहुत ज्यादा कुंठाग्रस्त रहते हैं। इससे आपका सेक्स जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके लिए ध्यान का सहारा लें और मन को एक स्थिर झील की तरह बनाएँ।
योगा पैकेज : सूर्यनमस्कार, पादहस्तासन, पश्चिमोत्तनासन, त्रिकोणासन, सुप्तवज्रासन, उष्ट्रासन, धनुरासन, नौकासन, चक्रासन, योगमुद्रासन, गोमुखासन, सिंहासन। प्राणायम में कपालभाती, भस्त्रिका। नेति में करें, सूत्र नेति। शुरुआत करें अंग संचालन से यह सब कुछ योग शिक्षक की देख-रेख में।
सेक्स और रोमांस दोनों अलग-अलग सब्जेक्ट हो सकते हैं, लेकिन जिस सेक्स क्रिया में एक दूसरे के प्रति प्यार नहीं वह महज कोरी सेक्स क्रिया ही होगी। जानने में आता है कि बहुत से पति-पत्नी में प्यार नहीं होता फिर भी वे सेक्स करते हैं, सिर्फ इसलिए की यह वैवाहिक जीवन की एक प्रक्रिया है। पत्नी की इच्छा नहीं है तब भी सेक्स और है तब पति खुद का स्वार्थ पूरा करके अलग हो लेता है। यह सब इस बात की सूचना है कि पति-पत्नी में प्यार जैसी कोई भावना नहीं है। योग से इस भावना को जाग्रत किया जा सकता है।
योग कहता है कि यदि आप खुद भीतर से बँटे हैं तो आप स्वयं को शांतिपूर्ण और शक्तिपूर्ण महसूस नहीं कर सकते। निश्चित तौर पर योग आपके स्वाभाविक सेक्स और प्यारपूर्ण संबंधों के लिए बहुत ही सहयोगी हो सकता है। योग का अर्थ होता है जोड़, मिलन। जब हम सेक्स जीवन की बात करते हैं तो यह जोड़ और मिलन आवश्यक है।
कैसे हो दूसरे से प्यार :
हम मुख्यत: तीन भवन में निवास करते हैं- शरीर, प्राण और मन। शरीर कुछ और, प्राण कुछ और तथा मन कुछ और कहता है। तीनों में सामंजस्यता नहीं होने के कारण तीनों ही रोग से ग्रसित हो जाते हैं। यही हमारे फस्ट्रेशन का कारण है और इस फस्ट्रेशन को हम अक्सर अपने घर में ही निकालते हैं।
दिमाग में द्वंद्व है तो हम किसी भी क्षेत्र में अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते हैं। दूसरों के प्रति प्यार होने के लिए हमें स्वयं से प्यार होना भी जरूरी है। यदि आप मानसिक द्वंद्व से घिरे हैं तो कभी तय नहीं कर पाएँगे कि सही क्या और गलत क्या। तो सबसे पहले इस द्वंद्व को मिटाने के लिए अपनी श्वासों पर ध्यान दें और इन्हें लय में लाएँ। इसके लिए प्राणायाम का सहारा लें।
प्यार भरे सेक्स की शर्त :
शरीर : प्राणायाम के साथ आप कुछ ऐसे आसनों का चयन करें जो अपकी बॉडी को फ्लेक्सिबल बना सके। वह कौन से योगासन हैं, जिन्हें करने से ऊर्जा का संचार होता है, यह जानने का प्रयास करें और फिर साथ-साथ उन आसनों को करें।
प्राण : बेहतर रिलेशनशिप ही बेहतर प्यार भरे सेक्स को जन्म देती है। वाद-विवाद के बीच आपसी संवाद खो न जाए, इसका ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसके लिए अपनी साँसों पर ध्यान दें जो आपके भीतर क्रोध और अहंकार उत्पन्न करती हैं। प्राणायम के प्रयोग इसमें आपकी मदद कर सकते हैं। कपालभाती और भस्त्रिका से द्वंद्व और फ्रस्टेशन का निकाल हो जाता है।
मन : मन में जीना अर्थात पागलपन में जीना है। ज्यादा मानसिक न बनें। अपने मन से ज्यादा अपने सहयोगी के मन की सुनें। मन में संतुलन लाएँ, क्योंकि बाह्यमुखी व्यक्ति बहुत ज्यादा बेचैन और अंतरमुखी बहुत ज्यादा कुंठाग्रस्त रहते हैं। इससे आपका सेक्स जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके लिए ध्यान का सहारा लें और मन को एक स्थिर झील की तरह बनाएँ।
योगा पैकेज : सूर्यनमस्कार, पादहस्तासन, पश्चिमोत्तनासन, त्रिकोणासन, सुप्तवज्रासन, उष्ट्रासन, धनुरासन, नौकासन, चक्रासन, योगमुद्रासन, गोमुखासन, सिंहासन। प्राणायम में कपालभाती, भस्त्रिका। नेति में करें, सूत्र नेति। शुरुआत करें अंग संचालन से यह सब कुछ योग शिक्षक की देख-रेख में।
काम के 10 सूत्र
आज की भागदौड़ की जिंदगी में जरूरी है हमारे मन और शरीर के लिए समय निकालना। जवानी में संभल गए तो ठीक अन्यथा तो डॉक्टर भरोसे ही जिंदगी समझों। इसीलिए हम लाएँ हैं काम के 10 सूत्र, जिससे जीवन अनुशासनबद्ध हो सके।
1.यम- यम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह न करना और अस्तेय का अर्थ है किसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।
2.नियम- नियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं के विचारों का अध्ययन करना और ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है कि सिर्फ 'एक परमेश्वर' के प्रति समर्पण करना। कहते हैं कि एक साधे सब सधे और सब साध तो एक भी ना सधे। नियम से ही जिंदगी में अनुशासन आता है।
3.आसन- आसन तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ्य बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।
4.अंगसंचालन/हास्य योग- यदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।
5.प्रणायाम- प्राणायाम तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।
6.ध्यान- ध्यान करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।
7.मुद्राएँ- यहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।
8.क्रियाएँ- क्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।
9.आहार- यह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।
10.विहार- विहार करना बौद्ध काल में प्रचलित था। खुली हवा में पैदल भी चला करें। कहते हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई। जरा घुमने-फिरने जाएँ और थोड़ा नंगे पैर भी चले। योग और आयुर्वेद में कहा गया है कि पैर यदि ज्यादा देर तक ढँके या बंधे हैं तो इसका असर हमारी श्वास पर होता है।
तो यह है काम के 10 सूत्र। प्रत्येक सूत्र में से यदि सिर्फ एक उपसूत्र का ही चयन करें तो भी 10 ही होते हैं जो बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।
Resource: http://msnyuva.webdunia.com/news/headlines/1007/25/1100725007_1.htm
1.यम- यम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह न करना और अस्तेय का अर्थ है किसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।
2.नियम- नियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं के विचारों का अध्ययन करना और ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है कि सिर्फ 'एक परमेश्वर' के प्रति समर्पण करना। कहते हैं कि एक साधे सब सधे और सब साध तो एक भी ना सधे। नियम से ही जिंदगी में अनुशासन आता है।
3.आसन- आसन तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ्य बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।
4.अंगसंचालन/हास्य योग- यदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।
5.प्रणायाम- प्राणायाम तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।
6.ध्यान- ध्यान करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।
7.मुद्राएँ- यहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।
8.क्रियाएँ- क्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।
9.आहार- यह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।
10.विहार- विहार करना बौद्ध काल में प्रचलित था। खुली हवा में पैदल भी चला करें। कहते हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई। जरा घुमने-फिरने जाएँ और थोड़ा नंगे पैर भी चले। योग और आयुर्वेद में कहा गया है कि पैर यदि ज्यादा देर तक ढँके या बंधे हैं तो इसका असर हमारी श्वास पर होता है।
तो यह है काम के 10 सूत्र। प्रत्येक सूत्र में से यदि सिर्फ एक उपसूत्र का ही चयन करें तो भी 10 ही होते हैं जो बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।
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Resource: http://msnyuva.webdunia.com/news/headlines/1007/25/1100725007_1.htm
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